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नवयुग निर्माता
३२ श्री प्रद्युम्न सूरि
श्री धर्मघोष सूरि
श्री सत्यविजय गणि ३३ ,, मानदेव सूरि ४७ ,, सोमप्रभ सूरि
,, करविजय गणि ३४ ,, विमलचन्द्र सूरि ४८ ,, सोमतिलक सूरि
,, क्षमाविजय गणि ३५ ,, उद्योतन सूरि
देवसुन्दर सूरि
, जिनविजय गणि ,, सर्वदेव सूरि
सोमसुन्दर सूरि
,, उत्तमविजय गणि ,, देव सरि ५१ ,, मुनिसुन्दर सूरि
, पद्मविजय गणि ,, सर्वदेव सूरि ५२ ,, रत्नशेखर सूरि
,, रूपविजय गणि ,, यशोभद्र सूरि तथा ५३ ,, लक्ष्मीसागर सूरि ,, कीर्तिविजय गणि ,, नेमिचन्द्र सूरि ५४ ,, सुभतिसाधु सूरि
,, कस्तूरविजय गणि , मुनिचन्द्र सूरि ५५ ,, हेमविमल सूरि
,, मणिविजय गणि ,, अजितदेव सूरि ५६ ,, अानन्दविमल सूरि ,, बुद्धिविजय गणि .. विजयसिंह सूरि
विजयदान सूरि [, बूटेरायजी] ,, सोमप्रभ सूरि तथा ५८ ,, हीरविजय सरि ७३ ,, विजयानन्द सूरि के ,, मणिरत्न सूरि ५६ ,, सेन सरि
[, आत्मारामजी ] ४४ , जगञ्चन्द्र सूरि । ६० ,, विजयदेव सरि ४५ ,, देवेन्द्र सुरि
६१ ,, विजयसिंह सरि श्री सिद्धाचल की छत्रछाया में सम्पन्न होने वाले पालीताणा के चातुर्मास में तीर्थाधिराज को भावपूजा रूप पुष्प भेट करने के लिये आपने अष्टप्रकारी पूजा की रचना की जो कि नितान्त आकर्षक है उक्त पूजा का अन्तिम पद इस प्रकार है
पूजन करो रे आनन्दी, जिनन्द पद पूजन करो रे आनन्दी ॥ अंचली। अष्ट प्रकारी जन हितकारी, पूजन सुर तरु कन्दी ॥ १ ॥ जि. श्रावक द्रव्य भाव को अर्चन, मुनिजन भाव सुरंगी॥ २ ॥ जि. गणधर सुरगुरु सुरपति सगरे, जिनगण कोन कहंदी॥ ३ ॥ जि.
३ इनसे निर्ग्रन्थगच्छ का पांचवां नाम बड़गच्छ पड़ा। + इनसे बड़गच्छ का तपगच्छ नाम पहा ।
* इस सूची से यह निश्चय होता है कि श्री विजयसिंह सूरि के बाद श्री विजयानन्द सूरि से पहले कोई प्राचार्य नहीं हश्रा, किन्तु श्री सत्यविजय जी से लेकर श्री बुद्धिविजयजी तक सबको गणि-पन्यास पदवी ही रही है।
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