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नवयुग निर्माता
काजी यति का कहना था कि यहां पर किसी संवेगी साधु का कल्पसूत्र नहीं फिरा किन्तु हमारा ही फिरता है, इसलिये हमारा ही फिरना चाहिये इस पर श्रावकों ने कहा कि यतिजी महाराज ! आप अपना कल्पसूत्र भी साथ में फिरायें, उसकी बोली अलग बोली जावेगी और उस बोली की जो रकम होगी वह सब आप को मिलेगी । इस पर वह खुश होगये और कल्पसूत्र का जलूस बड़ी धूमधाम से सम्पन्न हुआ महाराज श्री आनन्द विजयजी के प्रवचन में उपस्थित होने वाले सद्गृहस्थों ने धर्म का आशातीत लाभ उठाया | आपके प्रवचन में इतना माधुर्य और आकर्षण था कि श्रोतालोग पाषाणप्रतिमा की तरह बड़े शान्त भाव से आपके उपदेशामृत का पालन करते और सब की दृष्टि इधर उधर न जाकर आप श्री के देदीप्यमान चेहरे पर ही टिकी रहती । सारांश कि पालीताणा में आये हुए यात्री लोगों ने इस जंगम तीर्थ के सानिध्य में आकर मानव जीवन का अपूर्व लाभ उठाया ।
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