________________
अध्याय ८३
" पालीताणे का चातुर्मास "
abo
महाराज श्री आनन्द विजयजी जिस समय [वि० सं० १६४३ में ] चातुर्मास के लिये पालीताणा में पधारे उस समय आपके साथ चौवीस साधु थे । अबके आपका चातुर्मास तीर्थराज श्री सिद्धगिरि की छायातले पालीताणा में होगा, इस समाचार के मिलते ही सूरत के सेठ कल्याण भाई शंकरदास वगैरह, भरुच निवासी सेठ अनूपचंद मलूकचंद वगैरह बड़ौदे के भवेरी श्री गोकुलभाई दुल्लभभाई, खंभात के रहने वाले श्री पोपटलाल अमरचंद वगैरह, और मालेगांव धुलिया - [ जिला खानदेश ] निवासी सेठ सखाराम दुल्लभदास वगैरह, बहुत से शहरों के अनुमान पांच सौ श्रावक श्राविकाएं अपने समस्त सांसारिक कामों को छोड़कर स्थावर और जंगम दोनों प्रकार के तीर्थों की सेवा भक्ति के निमित्त यहां पालीताणा में चौमासा आकर रहे | श्रावकों की उत्साहभरी प्रेरणा से इस चातुर्मास में आपने श्री भगवती सूत्र का वाचना आरम्भ किया और भावनाधिकार में श्री उपदेशपद स्टीक सुनाना शुरु किया । चातुर्मास बड़े आनन्द से व्यतीत होने लगा, चातुर्मास में आये हुए यात्री लोग बड़े आनन्द से धर्मसाधना में रस ले रहे थे । पर्युषण पर्व के दिनों में तो लोगों के उत्साह का समुद्र उमड़ आया । स्वप्नों की बोलियों में हर एक ने बढ़ चढ़ कर भागलिया । अकेली लक्ष्मीदेवी के स्वप्ने की बोली दस हज़ार तक गई जिसे एक सूरती सद्गृहस्थ ने लिया । इससे महाराजश्री के साथ चातुर्मास करने आये हुए यात्रियों में कितना उत्साह था, यह सहज ही में ज्ञात हो जाता है ।
Jain Education International
जिस दिन कल्पसूत्र का वरघोड़ा-जलूस निकलना था उस दिन वीरकाजी यतिजी ने कुछ उपस्थित करने का यत्न किया परन्तु विचारशील श्रावकों ने समयोचित नीति से काम लेते हुए उस विघ्न को भी शान्त कर दिया ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org