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नवयुग निर्माता
इतना सुनते ही महाराज श्री चलपड़े और जलूस मन्दिर जी के समीप आ पहुँचा,बैंड बाजे के साथ जयकारों की आवाज से आकाश गूंज रहा था । मन्दिर के पास जलूस ठहर गया और महाराज श्री मन्दिरजी में दर्शन के लिये चलेगये दर्शन करके जब वापिस लौटे तो पुलिस अफसर श्री भीमदेव ने कहा कि महाराज! थोड़ी देर आप यहां ठहरने की कृपा करें ये सब लोग आपके दर्शनों की अभिलाषा से खड़े हैं । इतना कहने के बाद [ यतिजी से ] आयो यतिजी ! महाराज जी साहब के दर्शन करो, आपको दर्शन देने के लिये ही
आपने मेरी अर्ज को मनजूर किया है । यतिजी बाहर आये और हाथ जोड़कर महाराज श्री को नमस्कार किया, उत्तर में महाराज श्री ने सुखसाता पूछी और कहा-कि हमारे आने से आपको कोई कष्ट तो नहीं हुआ ? नहीं महाराज! यह तो मेरा और नगर का अहोभाग्य है जो आप जैसे महान पुरुष पधारे हैं। आपका तो नाम ही आनन्द गर्भित है फिर आप जहां पधारें वहां कष्ट का क्या काम ? यतिजी ने बड़ी नम्रता दिखाते हुए उक्त शब्दों का प्रयोग किया [ सच है डरती हर हर करती ! ] वहां से जलूस आगे बढा और नरसी केशवजी की धर्मशाला में [जहां पर महाराज श्री ने ठहरना था] समाप्त हुआ। महाराज श्री ने धर्मशाला के मुनीम से ठहरने की आज्ञा लेकर वहां उतारा कर दिया। इस प्रकार महाराज श्री के पुण्य प्रभाव से पालीताणा में संवेगी साधुओं के आने पर उत्पन्न होने वाले उपद्रव की सदा के लिये शांति हो गई । आते ही आप श्री के परिवार में एक और साधु की वृद्धि हुई । सूरत निवासी श्री माणिकचन्द को दीक्षा देकर माणिकविजय नाम रक्खा और श्री प्रेमविजयजी का शिष्य घोषित किया ।
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