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पालिताणे का प्रवेश और उपद्रव शांति
के लिए हमें यहां पर उपस्थित रहने की आज्ञा फरमाई है । अतः हम आपकी सेवा के लिये यहां पर हाजर हुए हैं । सो आपको इस बात का पूरा ध्यान रहे कि इस जलूस में आपने या आपके चेले चांटों ने किसी प्रकार की भी गड़बड़ करने की कोशिश की तो सरकारी हुकम के मुताबिक ऐसा दण्ड मिलेगा जो कि आयु भर न भूले । " हथकड़ियों की ओर इशारा करते हुए" ये सब जेवर गड़बड़ करने वालों को पहनाने की खातिर ही लाये गये हैं ।
इतना सुनते ही यति जी तो ठंडे होगये और काम्पते हुए बोले-नहीं साहब ऐसा कभी नहीं होगा ।
भीमदेव - तो आप भीतर अपने उपाश्रय में चले जावें यहां चबूतरे पर खड़े न रहें और ये भीतर कौन लोग हैं ? इनको निकालो बाहर । वरना सभी को हिरासत में ले लिया जावेगा । साथ के सिपाहियों को हुक्म देते हुए इन गैंडों को बाहर निकालदो मालूम होता है ये सब गड़बड़ करने के इरादे से ही यहां पर इकट्ठे हुए हैं। बाहर लेजाकर इनकी खूब मरम्मत करो, तभी ये बाज़ आयेंगे ।
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पुलिस अफसर भीमदेव की इस सिंह गर्जना ने सबके छक्के छुड़ा दिये । वे अन्दर खड़े २ थर २ कम्पने लगे । "चलो निकलो बाहर आओ" ऐसा सिपाहियों के कहने से बाहर आये तो उनके साथ एक सफेद पोष व्यक्ति को देख कर हंसते हुए पुलिस अफसर ने कहा -वाह सेठजी वाह ! आप भी इन गुण्डों में शामिल होगये ? नहीं साहब ! मैं तो सामैया देखने के लिए आया था, जरा झेंपते हुए उसने उत्तर दिया । तब आईये मेरे साथ यहां खड़े होकर जलूस की रौनक देखिये । ऐसा कहकर उसे पुलिस की निगरानी में चबूतरे पर खड़ा कर दिया और भीतर बैठे हुए अन्य आदमी जब बाहर निकल कर भागने लगे तो पुलिस को कहा कि इनमें से कोई भी जाने न पावे, तब पुलिस के सिपाहियों ने उनको जो कि उपद्रव करने के इरादे से यतिजी के उपाश्रय में छिपे बैठे थे, अपनी हिफाजत में ले लिया ।
इधर जलूस में शामिल होने वाले विदेशी श्रावक श्रीयुत गोकलभाई, कल्याणजी भाई, सखाराम भाई, अनूपचन्द और पोपट भाई वगैरह आपस में कुछ बातें करने लगे, उनकी बातों से महाराजजी साहब को कुछ सन्देह सा हुआ और पूछने लगे कि भाई क्या बात है ? तब एक श्रावक ने मुख पर कुछ उदासी लाते हुए कहा - महाराज ! कुछ गड़बड़ सुनने में आती है । यतिजी के उपाश्रय के पास पुलिस का पहरा लगा हुआ है । यदि ऐसा है तो दूसरे रास्ते से चले चलो, अपने फिर आकर मन्दिरजी में दर्शन कर जावेंगे, महाराज श्री ने बड़ी शांति से उत्तर दिया । इतने में पुलिस अफसर भीमदेव ने आकर जलूस को चलने के लिए कहते हुए उन सेठों से कहा 'चलिये साहब देरी होती है ।' जब उन्होने महाराज श्री के विचार को भीमदेव के पास प्रकट किया, तो वह महाराज श्री के पास पहुँचा और हाथ जोड़ कर अर्ज करी कि महाराज साहब! किसी बात की गड़बड़ नहीं है आप इसी रास्ते से पधारो । अन्यथा मुझे दरबार साहब को उत्तर देना कठिन हो जावेगा, आप दयालु हैं कम से कम मेरे ऊपर तो दया करें। इसी रास्ते से पधारो सरकार !
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