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पालीताणे का प्रवेश और उपद्रव शान्ति
तर्फ से उचित प्रबन्ध हो जावेगा । देखना इस काम में कोई त्रुटि न रह जावे ! जिससे सेठों की तर्फ से मुझे कोई उपालम्भ न आवे । आप इस विषय के हर तरह से जानकार हैं इसलिये आपको बुलाया गया है. ताकि आपके द्वारा मुनिजी के प्रवेश महोत्सव का प्रबन्ध सुचारुरूप से सम्पन्न हो ।
दुल्लभ भाईई-सरकार ! आपके इस हुक्म के पालन में मेरी तर्फ से किसी भी प्रकार की कोताही नहीं होगी, सब काम आपकी इच्छानुसार ही होगा, मगर इसमें एक अड़चन सी नजर आती है। यदि उसका प्रबन्ध होजावे तो फिर किसी प्रकार की त्रुटि नहीं रहेगी ।
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राजासाहब—वह क्या अड़चन है मुनीमजी !
दुल्लभ भाई - सरकार ! यहां के रहने वाले श्रावक लोगों पर यतियों का अधिक प्रभाव है । वे उनकी इछा के विरुद्ध कुछ भी नहीं कर सकते और यति लोगों को हमारे क्रियापात्र संवेगी साधु एक आंख भी नहीं भाते ! ये लोग साधुओं के मान को अपना अपमान समझते हैं । मन्दिर के पास में ही यतियों का उपाश्रय है । उसमें वीरकारिप नाम का एक यति रहता है, वह साधुओं का अधिक विद्वेषी है और उसका यहां के लोगों पर काफी प्रभाव है, कभी उसके चेलेचांटे उसके इशारे पर कुछ गड़बड़ करें ऐसा संभव है । कारण कि यति लोग नहीं चाहते कि उनके उपाश्रय के आगे से किसी संबेगी साधु का जलूस निकले । परन्तु मन्दिर जी को जाने के लिये रास्ता वही है। यहां पर आने वाले यात्री- फिर बे गृहस्थ हों या साधु - सबसे पहले श्री मन्दिरजी में आते हैं और दर्शन करने के बाद किसी धर्मशाला में ठहरते हैं। बस यही एक अड़चन सी नजर आती है हजूर ।
राजासाहब—इसके लिये तो आप वे फिकर रहें, यह अड़चन तो बिलकुल मामूली है। इसके लिये पुलिस अफसर को बुलाकर कह दिया जावेगा, वह पुलिस के द्वारा सारा बन्दोबस्त कर देवेगा । आप अपना काम तत्परता से करें। बहुत अच्छा सरकार ! इतना कहकर दुल्लभभाई अपने स्थान पर आगये, प्रवेश महोत्सव की तैयारी करने का सद्विचार लेकर ।
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अपने स्थान पर आकर मुनीमजी ने विचारा कि यदि प्रेमपूर्वक समझाने से यति जी मान जावें किसी प्रकार का उपद्रव न करें तो अच्छी बात है । इससे महाराज श्री का प्रवेश भी निर्विघ्नता से हो जावेगा और यतिजी के मान में भी फर्क न आयेगा । ऐसा विचार करने के बाद मुनीम दुल्लभ भाई वीरका जीत के पास आये और सप्रेम उनसे बोले, महाराज ! मैं आपको एक सन्देश देने आया हूँ-कल यहां पालीताणे में पंजाब के सुप्रसिद्ध साधु मुनि श्री श्रानन्द विजय आत्मारामजी महाराज अपने शिष्य परिवार के साथ पधार रहे हैं, उनका सामैया करना है अर्थात बाजे गाजे के साथ प्रवेश कराना है। यदि आप भी उसमें सम्मिलित हों तो बड़ी खुशी की बात है। इससे आपस में सद्भाव बढेगा और संघ में शान्ति का बातावरण प्रसरेगा, कहो आपका क्या विचार है ?
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