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नवयुग निर्माता
साथ २ आपमें निर्भयता और साहस भी प्रचुर मात्रा में विद्यमान था । एकबार लहरा में रात्रि के समय डाकुओं ने धावा बोला, तो गणेश चन्द्र जी हथियारों से लैस होकर गांव वालों की हिम्मत बढ़ाते हुए कुछ जवानों को साथ लेकर डाकुओं का सामना करने चले गये । वहां डाकुओं के साथ उन्होंने डट कर मुकाबला किया, अन्त में डाकू मैदान छोड़कर भाग निकले । वहां से गणेश चन्द्र जी जब घर लौटे तो क्या देखते हैं बालक आत्माराम नंगी तलवार हाथ में लिए द्वार पर खड़े हैं । गणेश चन्द्र जी पुत्र को इस प्रकार डटे देखकर आश्चर्य चकित भी हुए और प्रसन्न भी। बोले-क्यों बेटा ! तलवार लिये कैसे खड़े हो ? “घर की रक्षा के लिये आत्माराम जी ने उत्तर दिया।
"तुम अकेले इतने डाकुओं से घर की रक्षा कैसे कर सकते थे ?" ।
वीर बालक आत्माराम ने निर्भय होकर उत्तर दिया-क्यों न कर सकता पिताजी ? जब कि आप अकेले ग्राम की रक्षा कर सकते हैं तो क्या मैं घर की रक्षा नहीं कर सकता ? बालक आत्माराम की यह बात सुनकर गणेश चन्द्र जी का मन प्रसन्नता से फूल उठा, उन्होंने उसे गोदी में उठाकर प्यार किया और उसके साहस की ओर ध्यान देते हुए मन में अपने सद्भाग्य की भूरि २ सराहना की।
मानव जीवन अनेक प्रकार की विषम परिस्थितियों का केन्द्र है, इसमें अनेक तरह के उतार चढ़ाव दृष्टि गोचर होते हैं । जीवन यात्रा में इष्ट वियोग और अनिष्ट संयोग यह जीव के स्वोपार्जित मिश्रित (शुभाशुभ ) कर्मों की देन है । इसी नियम के अनुसार सुख और दुःख का अनुभव करता हुआ मानव अपनी भवस्थिति को पूरा करता है।
क्षयान्ता निचयाः सर्वे, पतनान्ताः समुछियाः ।
संयोगा विप्रयोगान्ताः, मरणान्तं हि जीवनम् ।। इस अभियुक्तोक्ति के अनुसार गणेश चन्द्र जी की आशालता अभिपल्लवित ही होने पाई थी कि दुर्दैव की कोपाग्नि के सन्निधान से मुर्भा गई-सूखगई । उन्हें अपने प्रियपुत्र की साहस पूर्ण बालचर्या में बीज रूप से रही हुई गुणासन्तति के भावि विकास को देखने का सौभाग्य प्राप्त न हो सका । अथवा यूं कहिये कि वीर बालक आत्माराम को अपने वीर पिता की पुनीत छत्रछाया तले अपने चमत्कार पूर्ण भाविजीवन को विकासमें लाने की उपयुक्त सामग्री से वंचित रहना पड़ा। सारांश कि दोनों का दृष्टिगोचर होने वाला स्नेह बन्धन टूट गया । और दोनों एक दूसरे की दृष्टि से ओझल हो गये। पिता को पुत्र का त्याग करने पर विवश होना पड़ा और पुत्र को पिता वियोग सहन करना पड़ा इस सम्बन्ध विच्छेद का कारण तात्विक दृष्टि से तो उदयगत कर्म की विषम परिस्थिति ही है और बाह्यदृष्टि से निमित्त इसमें सोढी अत्तर सिंह है जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है । वीर क्षत्रिय गणेश चन्द्र और मातारूपा देवी की एक मात्र जीवन पंजी बालक आत्माराम को किसे सौंपा जाय, यह एक विषम समस्या इस दम्पति के लिये
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