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________________ २६४ नवयुग निर्माता पधारो। अपने लोगों का निर्वाह तो यात्रियों पर ही निर्भर करता है । चौमासे में यात्री लोग तो आते नहीं इसलिये वहां आहार पानी का कष्ट तो अवश्य है । और साधुओं के पुण्य से यदि लिखने वाले भाग्यवान् श्रजावें तब तो कोई हरकत नहीं आती । यदि कोई न आवे तो आहार पानी के लिये क्या करना ? इत्यादि सारी परिस्थिति का विचार करके निश्चित उत्तर दो। अगर हर प्रकार के परिषह को सहन करने की हिम्मत है तो सीधे चलो श्री सिद्धाचलजी को अन्यथा और किसी क्षेत्र का विचार किया जावे। आपश्री के कथन को सुनकर सब साधुओं ने हाथ जोड़कर कहा- कृपानाथ ! हम सबका विचार तो पालीताणा में चातुर्मास करने का सुनिश्चित है, कार्तिकी पूर्णिमा की पुण्ययात्रा का हम लोगों को फिर कब अवसर मिलेगा ? हमने तो पंजाब में जाना है काल का कोई भरोसा नहीं, फिर कभी इधर आना होवे कि नहीं यह कौन जानता है ? इसलिये इस अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहिये । अब रही आहार पानी की बात । सो आपश्री का पुण्य प्रबल है, आहार पानी की चिन्ता का तो अवसर ही नहीं आवेगा । यदि वे भी तो तपस्या करेंगे, गांव में फिर कर जैन जैनेतर सब लोगों के घरों से जैसा भी रूखा सूखा शुद्ध आहार मिलेगा उससे निर्वाह करेंगे। अपने सब पंजाब से चलकर यहां तक आये हैं तो कोई गृहस्थों के सहारे पर तो नहीं आये। रास्ते में जैसा भी रूखा सूखा आहार मिलता रहा उसी को खाकर यहां आ पहुंचे हैं । फिर पालीताणा में आपश्री जैसे प्रभावशाली महापुरुषों के साथ में रहते हुए आहार पानी की क्या चिन्ता ? इसलिये कृपानाथ ! इच्छा न होते हुए भी आप हम लोगों के लिये वहां चातुर्मास ठहरने का अनुग्रह करें हम सब की यही आपके पुनीत चरणों में विनति है । इस प्रार्थना के उत्तर में महाराजश्री की तर्फ से बहुत अच्छा" इतना सुनते ही सब ने आदीश्वर भगवान के नामका जयकारा बुलाया और कल पालीताणा की ओर विहार करने की नगर सेठ को सूचना करदी | दूसरे दिन नगर सेठ प्रेमाभाई हेमाभाई ने महाराज श्री से पूछा कि साहब जी ! बिहार का कौनसा समय निश्चित किया है । गुरु महाराज ने उत्तर दिया कि विजयमूर्त में बिहार का निश्चय किया है अर्थात् स्टैन्डर्ड टाइम ठीक साढ़े बारह बजे यहां से कदम उठाऊंगा। यह सुनकर सेठजी वन्दना नमस्कार करके घर को चले गये और व्याख्यान सभा में आई जनता भी अपने २ घरों को रवाना होगई । उस रोज बिहार का निश्चय होने से व्याख्यान सभा जल्दी समाप्त करदी गई थी। आहार पानी से निवृत्त होकर बारह बजे के करीब सब साधु तैयार होगये और बहुत से लोग भी समय से पहले पहुँच गये, मगर नगर सेठ नहीं पहुँचे इधर घड़ीयाल ने जब साढ़े बारह का टकोरा दिया तो गुरु महाराज कदम उठाया और चलने लगे। तब कई एक श्रावकों ने विनम्र भाव से आगे बढ़कर कहा कि महाराज ! सेठजी अभी नहीं आये । [ उनके इस कथन का आशय यह था कि आप थोड़ी देर उनकी प्रतीक्षा करलें । ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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