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________________ अध्याय ८० साधुओं से परामर्श महाराज ! यहां पर कई एक शहरों से पत्र आये हैं, उनमें लिखा है-'हमने सुना है कि अबके श्री श्रानन्दविजयजी-श्री आत्मारामजी महाराज का चातुर्मास पालीताणा में होगा, क्या यह सत्य है ? यदि महाराजश्री का विचार पालीताणा में चातुर्मास करने का होवे तो हमारा विचार भी वहीं पर चौमासा रहने का है इत्यादि" यह सूचना सेठ प्रेमाभाई हेमाभाई और सेठ दलपतभाई भग्गुभाई ने देते हुए आपसे सविनय अर्ज की-महाराजजी साहब ! मुंडके का फैसला होगया है अर्थात् फी यात्री दो रुपये कर का जो झगड़ा पालीताणा दरबार से चल रहा था उसका निबटारा होगया है और यात्रा खुल गई है इसलिये यदि आपका चातुर्मास अबके पालीताणा में होवे तो बहुत अच्छी बात है । कहिये क्या विचार है ? श्री आनन्द विजयजी-कुछ विचार तो है आगे ज्ञानी जाने यदि वहां की क्षेत्र फर्सना ज्ञानी ने देखी होगी तो वहीं पर चातुर्मास होगा अन्यथा कहीं पर तो करना ही है । अगर पालीनाणा में होवे तब तो बड़ा पुण्य का उदय समझना चाहिये, तीर्थाधिराज की कार्तिकी पूर्णिमा की यात्रा हो जावेगी। वहां के चातुर्मास का यही सर्वोत्तम लाभ है । अस्तु, साधुओं के साथ विचार करेंगे। इतना वार्तालाप होने के बाद सेठजी वन्दना नमस्कार करके वहां से बिदा हुए और महाराज श्री भी अपने स्थान में आगये । दोपहर के समय सब साधुओं को अपने पास बैठाकर आपने कहा-बोलो, श्री सिद्धगिरि में चातुर्मास करने के बारे में तुम लोगों का क्या विचार है ? लोग वहां पर चौमासा करने का आग्रह कर रहे हैं और स्वयं आने को लिख रहे हैं और यहां के सेठों की भी विनति है । अब तुम लोग दृढ़ निश्चय करलो ताकि उनको सूचित किया जावे । तुम लोगों को यह तो मालूम ही है कि पालीताणा इस समय सर्वेसर्वा यतियों का क्षेत्र बन रहा है । तुमने वहां जाकर देख ही लिया है । क्या कभी किसी गांव वाले ने आकर आहार पानी की विनति की है। कभी किसी ने आकर कहा है कि महाराज ! आहार पानी के लिये मेरे यहां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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