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नवयुग निर्माता
का मत जैन शास्त्रों से सरासर विरुद्ध है, उनकी लिखी पुस्तक में से मैंने ये १४ प्रश्न निकाल कर उनके पास भेजे थे, जिनके उनकी तरफ से ये उत्तर आये हैं, इनको देखने से मैं तो इसी नतीजे पर पहुँचा हूँ कि उनसे मेरे किसी प्रश्न का भी सन्तोषजनक उत्तर नहीं बन पड़ा। अब आप लोग अपने निश्चय के लिये इन प्रश्नों के साथ हुक्ममुनिजी के उत्तरों को लिखकर निर्णयार्थ भारतवर्ष के अन्य जैन जैनेतर विद्वानों के पास भिजवाने का यत्न करो जिससे सत्यासत्य का यथार्थ निर्णय होसके । आपके इस कथन को मान देते हुए सूरत के जैन संघ ने आपके प्रश्न और हुक्ममुनि के उत्तर श्री जैन ऐसोसिएशन ऑफ इण्डिया-भारतवर्षीय जैन समाज के मंत्री के पास बम्बई भेज दिये और साथ में लिखदिया कि इनको भारत वर्ष के प्रतिष्ठित जैन जैनेतर विद्वानों के पास निर्णयार्थ भेज दिया जावे । ऐसोसिएशन के प्रधान मंत्री ने सूरत संघ को सूचनानुसार भारतवर्ष के विख्यात जैन साधुओं जैन यतियों और जैन धर्म के ज्ञाता जैनेतर विद्वानों के पास उन प्रश्नोत्तरों को भेज दिया । . पाठकों को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि बाहर के जैन जैनेतर सन विद्वानों ने आप ही के पक्ष में अपना निर्णय दिया । सबने अपने निर्णय में यही लिखा कि मुनि श्री आनन्दविजयजी का कथन जैन शास्त्र सम्मत है और श्री हुक्ममुनिजी का उसके-जैन शास्त्र के विपरीत है।
तब बाहर से आये हुए विद्वानों के निर्णय को लेकर ऐसोसिएशन के मंत्री ने सूरत में आकर समस्त श्रीसंघ को एकत्रित करके वि० सं० १९४२ मगसर शुदि १४ के दिन विद्वानों का दिया हुआ निर्णय सुनाते हुए कहा कि भारतीय जैन जैनेतर विद्वानों के निर्णयानुसार श्री हुक्ममुनिजी का कथन शास्त्र विरुद्ध होने से ग्राह्य नहीं है और सभा में आये हुए हुक्ममुनि के पक्षवाले ग्रहस्थों से कहा कि बाहर से आये हुए विद्वानों के अभिप्रायानुसार श्री हुक्ममुनि जी का बनाया हुआ "अध्यात्मसार" ग्रन्थ अप्रामाणिक सिद्ध हुआ है । इस लिए हमारी तर्फ से आपलोगों द्वारा श्री हुक्ममुनि जी को सूचित किया जाता है कि उनका अध्यात्मसार ग्रन्थ जैनागमों के मन्तव्य के विरुद्ध होने के कारण प्रामाणिक नहीं माना जा सकता। अब या तो वे इसमें सुधारा करें अर्थात् उसमें से आगम विरुद्ध लेखों को निकाल दें, अथवा अलग लेख द्वारा उन्हें अप्रमाणिक घोषित करें ! जब तक वे हमारी इस सूचना पर ध्यान नहीं देते तब तक उनके इस ग्रन्थ को कोई भी जैन प्रामाणिक नहीं मान सकता । इतनी घोषणा के बाद सभा विसर्जित हुई और भाविक जैन गृहस्थों को हुक्ममुनि के मिथ्या मायाजाल से छुटकारा मिला, जिसका सर्वतोभावी श्रेय महाराज श्री श्रानन्दविजय जी को है।
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