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________________ अध्याय ७६ श्री हुक्ममुनि का प्रकरण इस चतुर्मास में सबसे उल्लेखनीय बात श्री हुक्ममुनि की है। जिसके फैलाये हुए मिथ्या भ्रमजाल में फंसे हुए श्रावक श्राविका समुदाय को निकाल कर धर्ममार्ग पर चलाने का आपने महान् श्रेय उपार्जन किया । उस समय सूरत में हुक्म मुनि नाम के एक जैनाभास साधु का बड़ा प्रभाव था । लोग उसके उपदेशों से अधिक प्रभावित होकर धार्मिक क्रियाकांड को त्याग चुके थे। उसकी कोरी अध्यात्मवाद की प्ररूपणा ने जैन परम्परा के जीवनोपयोगी धार्मिक क्रियाकलाप को बहुत आघात पहुँचाया। अधिक क्या कहें उसके संसर्ग में आने वाली जैन जनता प्रायः नास्तिक सी बन चुकी थी। श्री हुक्ममुनि ने अपने विचारों को स्थायी रूप देने के लिये एक पुस्तिका की रचना की जो कि " अध्यात्मसार" इस नाम से छपवा कर प्रकाशित कराई गई । इसका अबोध जैन जनता पर बहुत उलटा प्रभाव पड़ा । यथार्थ श्रद्धान के बदले उसके हृदय में विपरीत श्रद्धान ने स्थान ग्रहण कर लिया। यह देख धर्मप्राण महाराज श्री श्रानन्दविजयजी को धर्म की इस प्रकार होने वाली अवहेलना बहुत खटकी और श्रद्धालु श्रावकवर्ग का इस प्रकार धर्म से विमुख होना उन्हें असह्य हो उठा । तब आपने अपने प्रतिदिन के प्रवचन में हुक्ममुनि के धर्मविरुद्ध विचारों का प्रतिवाद करना रंभ किया और उसके बनाये हुए अध्यात्मसार ग्रन्थ में से १४ प्रश्न निकाले। उन प्रश्नों को एक श्रावक के द्वारा श्री हुक्ममुनि तक पहुँचाया और कहा कि आपका यह अध्यात्मसार ग्रन्थ जैनागमों से विरुद्ध अथच मनःकल्पित है । उसमें से नमूने के तौर पर ये १४ प्रश्न निकाल कर भेजे हैं. या तो इन प्रश्नों का समुचित समाधान करो अन्यथा अपनी त्रिपरीत मान्यता का परित्याग करो ? परन्तु हुक्ममुनि की तर्फ मे कोई भी सन्तोष जनक उत्तर न मिला तो आपने सूरत के समस्त जैन संघ को आमन्त्रित करके कहा कि श्री हुक्ममुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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