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________________ अध्याय ७५ सूरत का चातुर्मास भरुच से बिहार करके ग्रामानुग्राम विचरते हुए शिष्य परिवार सहित महाराज श्री आनन्दविजयजी सूरत बन्दर पधारे । सूरत के श्रावक समुदाय ने जिस समारोह के साथ आप श्री का शहर में प्रवेश कराया वह जैन परम्परा के धार्मिक इतिहास में एक उल्लेखनीय स्थान रखता है । आपके इस प्रवेश महोत्सव को देखकर सूरत के पारसी तथा अन्य दर्शनी बड़े बड़े वृद्ध पुरुष कहने लगे कि किसी साधु महात्मा का ऐसा श्रद्धापूरित आदरणीय और समारोह के साथ होने वाला प्रवेश महोत्सव आज तक हमारे देखने में नहीं आया । श्रावक वर्ग की अाग्रह भरी असीम प्रार्थना से आपने १६४२ का चतुर्मास यहीं पर किया। चातुर्मास की विनति के स्वीकार होते ही श्रावकों के हर्ष का पारावार न रहा । घर घर में खुशियां मनाई जाने लगी सारे संघ में अपूर्व उत्साह बढ़ा । श्रावक वर्ग की अभिलाषा को देख चौमासे में श्री आचारांग सूत्र सटीक और भावनाधिकार में श्री धर्मश्रुत प्रकरण का प्रवचन आरंभ किया। आपके प्रवचनामृत का पान करते हुए सूरत के श्रावक श्राविका समुदाय ने जो अलभ्य लाभ प्राप्त किया वह सूरत के धार्मिक इतिहास में अपना विशेष महत्व रखता है । फलस्वरूप सूरत के इस चातुर्मास में आप श्री के धर्मोपदेश से भिन्न भिन्न धार्मिक कार्यों में लग भग ७५००० रुपये का सद्व्यय हुआ। इस के अतिरिक्त इस चातुर्मास में महाराज श्री ने “जैनमत वृक्ष" नाम के एक छोटे से ग्रन्थ की रचना की । तात्पर्य कि सूरत का यह चातुर्मास हर एक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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