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खंभात और भरुच आदि तीर्थ स्थानों की यात्रा
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पिछले भवका सारा वृत्तान्त सुनाते हुए कहा कि पिताजी ! जब इन सेठजी ने “नमो अरिहंताणं" कहा तो उसके सुनते ही मुझे जाति स्मरण ज्ञान होगया । अब मैं भरुच में जाकर उस मंदिर का जीर्णोद्धार कराऊंगी। यह सुनकर राजा ने कहा-बेटी ! बड़ी खुशी से तुम जब चाहो जा सकती हो । तुमने जाना होतो मुझे कह देना मैं तुम्हारा सब प्रबन्ध करा दूंगा। तुमने इन सेठजी के ही वहां ठहरना और इनके द्वारा ही जीर्णोद्धार का सारा काम करा लेना । क्यों सेठजी ! ठीक है न ?
सेठजी हाथ जोड़कर-महाराज ! आपकी आज्ञा शिरोधार्य है, राजकुमारी जैसी आज्ञा करेंगी उसी के अनुसार सब काम किया जावेगा।
कुछ दिनों बाद जब वह व्यापारी सेठ वापिस जाने को तैयार हुआ तो राजा ने मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिये जितने धन और सामग्री की आवश्यकता थी उसका प्रबन्ध करके कुमारी सुदर्शना को सेठ के साथ भरुच भेज दिया । राजकुमारी सुदर्शना ने भरुच पहुंच कर अपनी इच्छा के अनुसार मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया और मन्दिर में अपने पिछले भव का सारा वृतान्त अंकित कराया तथा उक्त मन्दिर का "समली विहार" यह नाम भी निर्दिष्ट किया । तब से यह समली विहार के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
आज भी इस मन्दिर में कुछ ऐसे चिन्ह दिखाई देते हैं जिनसे उक्त वृत्तान्त विश्वसनीय प्रमाणित होता है [ देखो सुदर्शना चरित्र, मुनि सुव्रत स्वामी के चरित्र में ] मुनि सुव्रत स्वामी के इस लोक प्रसिद्ध "अश्वावबोध विहार" अथवा "समली विहार" नाम के अति प्राचीन मन्दिर के अस्तित्व से जैन परंपरा में भरुच का नाम विशेष ख्याति को प्राप्त हुआ है। इसके आस पास तीन और तीर्थ स्थान यात्रा करने के योग्य हैं । (१) श्री झगड़ियाजी (२) कावी और (३) गन्धार । ये तीनों तीर्थ स्थान भी विशेष महत्व के हैं। इस प्रसंग में भरुच निवासी स्वर्गीय सेठ अनूपचन्द मलूकचन्द का उल्लेख करदेना भी समुचित ही प्रतीत होता है । सेठ अनूपचन्द एक अच्छे धर्मात्मा व्यक्ति थे । श्री हुकममुनि के सहवास में आने से उनकी धार्मिक आस्था में जो विकार उत्पन्न होगया था उसे श्री आनन्दविजयजी महाराज के सत्संग ने सुधार दिया । अापके सहयोग से जहां उन्होंने अपने धार्मिक विचारों को परिमार्जित किया वहां शास्त्रीय ज्ञान में भी पर्याप्त उन्नति की । उन्होंने "प्रश्नोत्तर रत्नचिंतामणि" नामकी एक पुस्तक भी लिखी है उसकी प्रस्तावना में महाराज श्री आनन्द विजयजी को अपना उपकारी बतलाते हुए उनके प्रति विशेष भक्तिभाव प्रदर्शित किया है । ( लेखक )
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