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अध्याय ७७
रायचन्द से राज विजय
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श्री हुक्ममुनि के प्रकरण को लेकर महाराज श्री आनन्द विजयजी को चौमासे के बाद भी सूरत में कुछ दिन और ठहरना पड़ा। इस अवसर में एक ढूंढक साधु जिसका नाम रायचन्द था उसने वि० सं० १६३९ की फाल्गुन वदी १३ को पोरबन्दर में देवरिख नामा एक ढूंढक साधु के पास दीक्षा ग्रहण की थी । परन्तु आपके बनाये हुए “सम्यक्त्व शल्योद्धार” ग्रन्थ के स्वाध्याय से उसकी ढूंढक मत पर अनास्था हो गई । तब उसने वि० सं० १६४२ आश्विन कृष्णा द्वादशी को ढूंढक मत और वेष का परित्याग करके मगसर वदि पंचमी के रोज श्री आनन्द विजय आत्मारामजी महाराज के पास शुद्ध सनातन जैनधर्म की साधु-दीक्षा को अंगीकार किया। श्री ने दीक्षा देने के बाद उसका "राज विजय" यह नाम रक्खा और श्री हर्षविजयजी का शिष्य घोषित किया ।
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