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अध्याय १
जन्म और बाल्यकाल
पंजाब प्रान्तीय फीरोज़पुर जिला की जीरा तहसील में लहरा नाम के एक छोटे से ग्राम 'कपूर वंश के क्षत्रिय वीर श्री गणेशचन्द्र की सतीधुरीणा माता रूपादेवी ने विक्रम सम्वत् १८६४ + की चैत्र शुक्ला प्रतिपदा के दिन सर्व गुण सम्पन्न एक सुन्दर बालक को जन्म देने का श्रेय प्राप्त किया । पुत्र प्राप्ति से माता पिता को कितना हर्ष होता है और उस हर्ष को व्यक्त करने के लिये वे कितने अधीर होते हैं यह सभी गृहस्थों
अनुभव में आई हुई बात है । क्षत्रिय वीर गणेश चन्द्र और माता रूपादेवी ने भी पुत्र जन्म की खुशी में उस समय की स्थिति और प्रथा के अनुसार किसी प्रकार की कमी नहीं रक्खी । गरीबों को दान दिया, स्वजन सम्बन्धिजनों का प्रीति भोजन आदि से सम्मान किया और बालक की दीर्घायु के लिये वृद्धों के आशीर्वचनों का सनम्र स्वागत किया । प्रसूति स्नान के बाद इस होनहार बालक का नामकरण संस्कार निष्पन्न हुआ जिसमें सर्वसम्मति से बालक का नाम "आत्माराम" रक्खा जो कि समय आने पर सर्वथा गुण निष्पन्न ही प्रमाणित हुआ ।
आयु का बहुत सा भाग व्यतीत करने पर जीवन में पहली बार ही आत्माराम जैसे आदर्श शिशुरत्न को उपलब्ध करके इस आदर्श दम्पति श्री गणेशचन्द्र और रूपादेवी को कितना हर्ष हुआ होगा इसका माप तो वे ही कर पाये होंगे, हां यह तो निस्सन्देह है कि लहरा ग्राम की जिस भूमि को बालक आत्माराम के चरण कमलों ने चिन्हित किया वह भूमि आज आर्य संस्कृति की एक विशेष परम्परा के लिये पवित्र तीर्थस्थान जितना ही महत्व रखती है ।
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यह तो एक दार्शनिक और सुनिश्चित सिद्धान्त है कि यह जीवात्मा अनन्त शक्तियों का भंडार है, अनन्त गुण सम्पदाओं का आकर (खान) है । परन्तु इन सत्तागत शक्तियों या गुणों का उसमें कब और कैसे
+ गुजराती सम्वत् १८६३ ।
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