________________
नवयुग निर्माता
में एक चतुर कर्णधार का काम देती है। विषयवासना सन्तप्त प्राणिसमुदाय को सान्त्वना और शान्ति प्रदान करती एवं उन्मार्ग गामी जीवों को सन्मार्ग की ओर प्रस्थान करने की सतत प्रेरणा भी उससे मिलती है । इस लिये महापुरुषों की पुण्य जीवन गाथा का चिन्तवन और स्वाध्याय भी जीवन-शुद्धि अथवा जीवन विकास के विशिष्ट साधनों में से एक है । परम मनीषी श्रीमद् विजयानन्द सूरि श्री आत्मारामजी महाराज अतीत और वर्तमान युग के उन महापुरुषों में से एक थे जिन्होने सत्य अहिंसा और त्याग तपस्या को अपने जीवन का विशिष्ट अंग बना कर उसका सजीव उज्ज्वल आदर्श प्रस्तुत किया और मानवजगत को जीवन के वास्तविक लक्ष्य की ओर प्रस्थान करने का दिव्य सन्देश दिया।
जैन परम्परा के इस नवयुग निर्माता महापुरुष के पुनीत चरणकमलों में निवेदित होने का सद्भाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ । दूसरे शब्दों में यही क्रान्तिकारी महामहिम युग पुरुष थे मेरे सद्गुरुदेव जिनके पुण्य सहवास से प्राप्त हुए उज्ज्वल प्रकाश में जीवन के निर्माण का पुण्य अवसर उपलब्ध हुआ । आपका पवित्र नाम जब वाणी पर आता है वाणी मुखरित और गद्गद हो उठती है, एवं स्मृति पंथ पर आते ही मन में आनन्द का उद्दाम स्रोत बहने लगता है। आपके पुण्य सहवास और पुनीत चरण सेवा में बिताये हुए वे क्षण कल्पना और स्मृति लोक में पुनः जाग्रत होकर जीवन को किसी अलौकिक सुखानुभूति से भरपूर कर देते हैं । जीवन के वे क्षण और जीवन के आज के क्षण इन दोनों में एक अद्भुत सा सामंजस्य स्थापित हो जाता है। आज की कल्पना, कल की वास्तविकता से मिल कर एक नई सृष्टि रच देती है जिसमें आत्मा की आनन्द विभूति का ही अधिक आभास होता है । आन्तरिक जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध रखने वाली आनन्द की उन घड़ियों को सार्थक और चिरस्थायी बनाने का एक उपाय सोचा है, वह है गुरुदेव की पुण्य जीवन गाथा का वर्णन । आन्तरिक सुखानुभूति अथवा मनःप्रसाद के लिए इससे अच्छा उपाय और क्या हो सकता है।
जिनके पुनीत चरण कमलों में बैठकर जीवन को समझने का साधन और प्रयास किया, जिनके पुण्य सहवास में अविनाशी आत्म-धन के उपलब्ध करने का सन्मार्ग और साधन मिला, ऐसे परमोपकारी गुरुदेव की पुनीत जीवन गाथा कहते हुए इस पुण्य सलिला सुरसरी में स्वयं भी डुबकी लगाता रहूँ और दूसरे सज्जनों को भी इसमें जीवन शुद्धि के लिए स्नान आदि का पुण्य अवसर मिले तो इसमें लाभ ही लाभ है। विश्व की इस महान आत्मविभूति की जीवन लीला के दृश्य अब आखों में एक के बाद एक आरहे हैं इस लिए अपनी बात को अब और न कह कर अपने और आपके (सहृदय पाठकों के) आनन्द में व्यवधान की इस दीवार को और लम्बी न करके वही बात आरंभ करता हूँ-गुरुदेव के जीवन की बात जिसके आदि अन्त और मध्य सब जगह आनन्द ही आनन्द है । आइये ! आनन्द सुधा के इस महान सागर की यात्रा कर डालें।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org