SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवयुग निर्माता न्यायाम्भोनिधि श्री विजयानन्द सूरि श्री आत्मारामजी महाराज P की जीवन गाथा HER साकार च निराकार, सर्वज्ञं सर्वदर्शिनम् । विश्ववन्धमहं वन्दे, वीतरागं जिनेश्वरम् ॥ १॥ येन क्रान्तिः समानीता, युगेऽस्मिन् जैनशासने । सद्गुरु तमहं वन्दे, आत्माराम मुनीश्वरम् ॥२॥ योऽभूत् पश्चनदीय भूमितिलकः सम्वर्द्ध मानोदयः । ध्वान्तं येन निराकृतं नु विततं वीरप्रभोः शासने ॥ सद्बोधेन सुबोधिता बहुजना देवार्चने प्राङ्मुखाः । तं सूरिप्रवरं नमामि विजयानन्दं गुरूणां गुरुम् ॥३॥ यत्कृपा-लेशमात्रेण, मूको वाचालतां ब्रजेत् । वन्द्या सा शारदा देवी, ज्ञानसम्पद् विवर्द्धिनी ।। ४ ।। प्रारम्भिक यत् किंचित् आदर्श जीवी महापुरुषों की पुण्य श्लोक अमर जीवन गाथा में कई एक असाधारण विशेषतायें होती हैं । सांसारिक प्रलोभनों का त्याग, निजी स्वार्थों का बलिदान, लोक कल्याण की भावना, विशाल मनोवृत्ति, अव्याहत सत्यनिष्ठा और निर्निमेष अध्यात्म जागरण आदि अनेक विशेषताओं का वह संगम स्थान होती है। जिसके समीप उपस्थित होने वाले विकासगामी साधकों को अपनी प्रगति के लिये प्रोत्साहन मिलता है। इतना ही नहीं किन्तु वह मानव जगत् की डगमगाती हुई जीवन नौका को संसार सागर से पार करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy