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नवयुग निर्माता
होता था। इस पर व्याख्यान सभा में उपस्थित एक श्रोता ने पूछा-महाराज! कौशाम्बी कहां पर आई ? इसके उत्तर में महाराज श्री ने फर्माया-बिहार प्रान्त में, अर्थात् बंगाल से पूर्व देश में कौशाम्बी थी जो कि
आजकल अल्लाहाबाद के नजदीक “कोसम्ब" नाम से प्रसिद्ध एक छोटा सा ग्राम है । वही किसी समय विशाल कौशाम्बी नगरी थी । बस फिर क्या था, उन थानापतियों के हाथ बात आगई । वे श्री आनन्दविजयजी के उक्त कथन का मनमाना अर्थ करके उन्हें बदनाम करने का यत्न करने लगे। उन्होंने आम जनता में यह प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया कि श्री आनन्दविजय-आत्मारामजी श्री शत्रुञ्जय और गिरनार जैसे महान तीर्थ क्षेत्रों को अनार्य बतला रहे हैं । इनमें मुख्य वहां के थानापति पम्यास श्री रत्नविजयजी थे। उनके पास जो कोई भी श्रावक आता उसको वे कहते कि तुम लोग जिस पंजाबी साधु अानन्दविजयजी की प्रशंसा करते नहीं थकते वे तो सिद्धाचल जैसे तीर्थराज को अनार्य बतला रहे हैं।
इसके सिवा उन्होंने महाराज श्री आनन्दविजयजी के शास्त्रीय वक्तव्य को शास्त्र विरुद्ध बतलाने और भोली जनता पर अपना प्रभाव जमाने के लिये “आर्यानार्य देश ज्ञापक चर्चापत्र' नाम की एक छोटीसी टीका-अनेन सम्बन्धेनायातस्यास्य व्याख्या-कल्पते निर्ग्रन्थानांवा निम्रन्थीनांवा पूर्वस्यादिशि यावत्
अंग मगधान 'एतुं, विहर्तुम्' अंगोनाम चम्मा प्रतिबद्धो जनपदः । मगधो राजगृहप्रतिबद्धो देशः । दक्षिणस्यां दिशि यावत् कोशांबीमेतं । प्रतीच्यां दिशि स्थूणा विषयं यावदेतं । उत्तरस्यां दिशि कुणाला विषयं यावदेतुंम् । सूत्रे पूर्व दक्षिणादि पदेभ्यः तृतीया निर्देशो लिंग व्यत्यश्च प्राकृतत्वात् । एतावत् तावत् क्षेत्रमब्धीकृत्य विहत कल्पते । कुतः-इत्याह-एतावत् तावत् यस्मादार्य क्षेत्रं “नो से" तस्य निर्ग्रन्थस्य निर्ग्रन्थ्या वा कल्पते अतः एवं विधात् आर्य क्षेत्रात् वहिर्विहर्तुम् । “ततः” परं वहिर्देशेषु अपि सम्प्रति नृपति कालादारभ्य यत्र ज्ञान-दर्शन-चारित्राणि उत्सर्पन्ति-स्फातिमा सादयन्ति तत्र विहर्तव्यम् । इति परिसमाप्तौ । ब्रवीमि इति तीर्थकर गणधरोपदेशेन नतु स्वमनीषिकयेति सूत्रार्थः । अथेदं सूत्रं भगवता यत्र क्षेत्रे यं च कालं प्रतीत्य प्रज्ञप्तं तदेवाह
साएयम्मि पुरवरे, स भूमि भागम्मिवद्धमाणेण । सुत्तमिणं पएणत्तं, पडुच्च तंचेव कालंतु ॥३२६१।। व्या०-साकेते पुरवरे सभूमि भागे उद्याने समवसृतेन भगवता वर्द्धमानस्वामिना सूत्रमिदं “तमेव"
वर्तमानं कालं प्रतीत्य निर्ग्रन्थनिम्रन्थीनां पुरतः प्रज्ञप्तं ॥३२६१।।
कथमित्याहमगहा कोसंबी या, थुणाविसोय कुणाला विसोय । एसा बिहार भूमी, एतावत्ताऽऽरियं खेत्तं ॥३२६२।। व्या०-पूर्वस्यां दिशि मगधान, दक्षिणस्यां दिशि कोशाम्बी, अपरस्यां दिशि थुणा विषयं, उत्तरस्यां दिशि
कुणाला विषयं यावत् ये देशाः एतावदार्य क्षेत्रं मन्तव्यम् । अतएव साधूनामेषा विहार भूमि । इतः परं निम्रन्थनिम्रन्थीनां विहत न कल्पते ॥३२६२।।
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