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________________ अध्याय ७० अहमदाबाद में चतुर्मास" पाली के सभी श्रावक वर्ग को अपनी धर्म देशना से सान्त्वना देने के बाद वहां से विहार करके पंचतीर्थी और आबूराज तीर्थ की यात्रा करते हुए शिष्य परिवार के साथ आप अहमदाबाद में पधारे । अहमदाबाद की जैन जनता ने आपका पहले से भी अधिक उत्साह भरा स्वागत किया। यहां आपने बड़ोदा राज्य में आने वाले “डभोई" नगर के रईस श्री मोतीचन्द को साधुधर्म में दीक्षित करके "श्री हेमविजय" इस नाम से अलंकृत किया तथा श्री हंसविजयजी का शिष्य घोषित किया । और अपने साथ के श्री उद्योत विजय आदि शिष्य वर्ग को गणी श्री मूलचन्द जी महाराज के हाथों बड़ी दीक्षा दिलाई तथा श्री संघ की प्रार्थना से १९४१ का चतुर्मास भी वहां अहमदाबाद में ही किया । अहमदाबाद का यह चतुर्मास कई प्रकार की विशेषताओं को लिये हुए सम्पन्न हुआ। सं० १९३२ के चतुर्मास में बाकी रहा हुआ श्रावश्यकसूत्र ही आपने बाचना प्रारम्भ किया । और भावनाधिकार में श्री धर्मरत्न प्रकरण का व्याख्यान शुरु किया । आपकी अलौकिक व्याख्यानशैली इतनी आकर्षक और मोहक थी कि व्याख्यान सभा में तिल धरने को भी स्थान नहीं रहता था लगभग सात हजार स्त्री पुरुषों का जमघट होता था। इस चतुर्मास में जैनधर्म का आशातीत उद्योत हुआ । पर्युषणा पर्व के दिनों में सैंकड़ों अठाई महोत्सव हुए, पूजा और प्रभावना आदि की तो कोई गणना ही नहीं रही। विविध प्रकार की तपश्चर्या और अनेक साधर्मिवात्सल्य हुए । तात्पर्य कि यह चतुर्मास हर एक दृष्टि से विशेष रहा और सबसे अधिक विशेषता इस चतुर्मास की यह कि आपके सदुपदेश से आकर्षित और प्रभावित हुई जनता ने पंजाब को धार्मिक सहायता पहुंचाने का श्रेय उपार्जन किया। एक दिन अहमदाबाद के श्री संघ ने सम्मिलित रूप से परामर्श करके आपके पास आकर प्राथना की, कि महाराज ! आपश्री ने पंजाब देश में जो नये श्रावक बनाये हैं, उनको हम लोग कुछ सहायता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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