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________________ अध्याय ६५ "मिलाफ में देवका हस्तक्षेप" यद्यपि दरबार जोधपुर की यह उत्कट इच्छा थी कि इन दोनों महापुरुषों का जोधपुर में मिलाप हो और उस मिलाप में होनेवाले वार्तालाप को जोधपुर की सारी प्रजा सुने, परन्तु कुदरत को यह मन्जूर नहीं था इसलिये जोधपुर नरेश की भावना सफल न हो सकी। कहते हैं कुदरत दो महारथियों का मेल नहीं होने देती, एक वासुदेव का दूसरे वासुदेव से मिलाप नहीं होने पाता। तात्पर्य कि दैव की प्रतिकूलता में मनुष्य का सारा ही प्रयास विफल हो जाता है। श्रावक वर्ग के चले जाने के बाद स्वामी दयानन्द सरस्वतीजी ने जोधपुर नरेश से कहासरकार ! जिस जैन महात्मा से मिलने का प्रस्ताव हुआ है वे अभी बीकानेर में विराजमान हैंचातुर्मास की समाप्ति पर वे वहां से चलेंगे उन्होंने पैदल सफर करना है अतः यहां पहुंचते उन्हें कम से कम दो मास लगेंगे, तबतक उनकी प्रतीक्षा में यहां बैठा रहना मुझे उचित प्रतीत नहीं होता और उधर अजमेर में कुछ काम भी है, अतः अजमेर जाकर मैं अपना दूसरा आवश्यक काम निमटालू और जिस समय आपकी सूचना मुझे मिलेगी मैं यहां पहुंच जाऊंगा इससे समय का भी सदुपयोग हो जावेगा और मिलाप भी बन सकेगा। जोधपुर नरेश-बहुत अच्छा आप अजमेर हो आइये, तब तक जैन मुनि भी आजायेंगे और आपको आने की सूचना भी करादी जावेगी। इतना वार्तालाप होने के बाद स्वामीजी जोधपुर से अजमेर को रवाना होगये । परन्तु कुछ ही दिनों बाद उनका वहीं पर स्वर्गवास होगया। सारे विचार धरे के धरे ही रह गये और मिलाप का किस्सा ही खतम होगया । दैव के इस प्रतिकूल हस्तक्षेप ने मिलाप का सारा ही खेल मिट्टी में मिला दिया। इधर महाराज श्री श्रानन्दविजय-श्रात्मारामजी ने जोधपुर पहुंचने के लिये चौमासा उठते ही अपने बीमार साधु को साथ लेकर अन्य शिष्य परिवार के साथ बीकानेर से विहार कर दिया और शनैः २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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