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युग निर्माता
विहार करते हुए जोधपुर पधारे। आपश्री के जोधपुर पधारने का समाचार मिलते ही वहाँ के संघ में भी आनन्द की एक अपूर्व लहर दौड़ गई, उसने दिल खोलकर आपश्री का स्वागत किया ।
आर्यसमाज नाम के एक नवीन मत के संचालक तथा परम पवित्र जैनधर्म पर प्रमाण शून्य असभ्य क्षेप करने वाले स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ वार्तालाप करने के निमित्त बीकानेर से सतत विहार करके जोधपुर पहुंचने के बाद जब महाराज श्री आनन्दविजयजी को स्वामी दयानन्द सरस्वती के देहान्त का समाचार मिला तो आप आश्चर्य चकित हो अवाक् से रहगये ! भाविभाव की अमिटता और जीवन की क्षरण - भंगुरता आपके सामने मूर्तरूप में प्रभासित होने लगी। पास में बैठे हुए श्रावक वर्ग को सम्बोधित करते हुए आप बोले- भाइयो ! यह मानव जीवन जितना दुर्लभ है उतना ही अस्थिर भी है। इसकी स्थिति कुशा के
भाग में स्थित जलबिन्दु से भी कम है । इसलिये जहां तक बने और जितना शीघ्र बने इस मानव प्राणी को धर्म संचय की ओर प्रस्तुत होने का यत्न करना चाहिये ।
स्वामी दयानन्दजी से मिलने और उनसे वार्तालाप करने की जोधपुर दरबार की ओर से की गई विज्ञप्ति को मान देकर मैं बीकानेर से चल कर यहां आया परन्तु दैव को यह मिलाप मन्जूर नहीं था । मेरे यहां आने से पहले ही स्वामीजी स्वर्ग सिधार गये । जीवन की अस्थिरता का इससे बढ़कर और क्या उदाहरण
सकता है। भारत के ज्ञान सम्पन्न तपोनिधि महर्षियों ने इसी विचार से मानव भव प्राप्त प्राणियों को अधिक से अधिक धर्मध्यान में प्रवृत्त होने का आदेश दिया है । अस्तु, इतना कहकर आप चुप हो गये ।
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