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पुनः गुजरात की ओर
सत्य कपर क्षमा जिन उत्तम, पन रूप गुरु जंगी ॥४॥ कोर्ति विजय गुरु समरस भीने, कस्तूर मणि है निरंगी ॥५॥ श्री गुरु बुद्धि विजय महाराजा, मुक्ति विजयगणि चंगी ॥६॥ तस लघु भ्राता आनन्द विजये, गाई विसति पद भङ्गी ॥७॥ खं युग अंक इन्दु' वत्सर में, बीकानेर सुरंगी ॥८॥ आत्माराम आनंद पद पूजो, मन तन हो इकरंगी ॥३॥
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