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________________ अध्याय ६१ "पंजाब में पांच वर्ष" विशुद्ध जैन परम्परा में दीक्षित होने के बाद महाराज श्री श्रानन्द विजयजी ने पंजाब में पांच चतुर्मास किये । इन पांच वर्षों में आपके क्रान्तिकारी धार्मिक आन्दोलन को आशातीत सफलता प्राप्त हुई। सहस्रों नर नारियों ने शुद्ध सनातन जैनधर्म में प्रवेश किया। और देवपूजक बने । देव मन्दिरों की स्थापना का प्रारम्भ हुआ । तथा अन्य धर्मानुयाइयों की तरफ से लगाये जाने वाले कलंक से जैनधर्म को मुक्त किया है। लोग जैनधर्म के वास्तविक आचार विचारों को समझने लगे और जैन साधु के यथार्थ वेष का उन्हें परिचय प्राप्त हुआ। जिससे कि इससे पूर्व वे बिलकुल अपरिचित थे। अधिक क्या कहें पंजाब से वर्षों से गई हुई जैन श्री को आपने फिर से उसके अनुरूप सिंहासन पर ला बिठाया। जहां पर विशुद्ध जैन परम्परा के साधु और जैन मन्दिरों की स्मृति भी लोग भूल चुके थे वहां अनेक साधुओं का घूमना और मन्दिरों में पूजा प्रभावना आदि का देखना, अन्य मतानुयायियों के लिये बिलकुल नया होते हुए भी आनन्द के देने वाला बना। वे लोग भी इस प्रकार के प्राचार व्यवहार की प्रशंसा करते । तात्पर्य कि आपके सतत प्रयास से पंजाब के हर एक नगर और ग्राम में जैनधर्म को प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त होगया ढूंढक पंथ के मुकाबिले में। इसके अतिरिक्त आपने कई एक ग्रन्थों की रचना करके और समय २ पर अन्य मतावलम्बियों से चर्चा करके जैनधर्म के महत्व को दर्शाते हुए अन्य लोगों को उसकी ओर आकर्षित करने का भी सफल प्रयास किया। .. CA $ उस समय के ढूंढक साधु बड़े मलिन वेष में रहते थे, और व्याकरणादि शास्त्रों के पठन पाठन का भी विरोध करते, एवं गृहस्थों को स्नानादि न करने का भी नियम दिलाते, इत्यादि बातों को देखकर अन्य मतानुयायी लोग इन से घृणा करते और इस बहाने जैन धर्म की निन्दा भी करते थे। परन्तु आज वह बात नहीं रही, अाजकल तो इनके साधुओं का वेष भी शुद्ध है और अच्छे पढ़े लिखे विद्वान् साधु भी देखने में आते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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