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स्वमत संरक्षण की ओर
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इधर गुजरांवाला में किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त हुए सत्यार्थप्रकाश को देखने और उस में की गई जैनधर्म की झूठी प्रतारणा से आपके हृदय को जो ठेस लगी उसने आपको स्वमत संरक्षण के लिये उद्बोधित किया। तब आपने अन्य रचना के लिये भी अपनी लेखनी को प्रस्तुत करने का विचार किया । उसी का परिणाम यह "अज्ञानतिमिर भास्कर" ग्रन्थ का प्रारम्भ है। परन्तु उस समय इसमें जिन वेद वेदांगादि पुस्तकों के उद्धरणों कि आवश्यकता थी वे सभी पास में न थे इसलिये केवल प्रारम्भ मात्र करके भविष्य के लिये छोड़ दिया गया।
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