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अध्याय ५६
"care संरक्षण की ओर"
क. - जैनतत्त्वादर्श का प्रकाशन
चौमासे बाद लुधियाने से विहार करके आप अम्बाले पधारे। वहां मुर्शिदाबाद के रईस राय बहादुर श्री धनपतसिंहजी आपके दर्शन करने को आये । आप श्री की आदर्शरूप चारित्र-निष्ठा और विशिष्ट ज्ञानसम्पदा को देखकर वे बड़े प्रभावित हुए । बिदा होने से पहले एक दिन वन्दना नमस्कार करने के अनन्तर हाथ जोड़कर जब उन्होंने आपसे कुछ सेवा फरमाने की प्रार्थना की तब आपने उनको स्वनिर्मित जैनतत्त्वादर्श ग्रन्थ को छपवाकर वितरण करने की सेवा फरमादी । जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया और जाते ही छपवाकर वितरणार्थ आपके पास भेजदिया और साथ में अन्य सेवा के लिये भी प्रार्थना करदी |
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ख. - - अज्ञानतिमिर भास्कर का प्रारम्भ
जैनधर्म के स्वरूप और सिद्धांतों के विषय में ज्ञानशून्य होने के कारण आम जनता में फैले हुए भ्रान्त विचारों को दूर करने की भावना से प्रेरित होकर मौखिक उपदेश के साथ साथ अपनी लेखिनी को भी मुखरित करना उचित समझा, कारण कि मौखिक उपदेश तो चिरस्थायी होता है और ना ही अधिक व्यापक । इसके बदले लेख जहां चिरस्थायी होता है वहां उसकी बहुव्यापकता भी सुकर है । इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिये आपने सर्वप्रथम नवतत्त्व और जैनतत्त्वादर्श का निर्माण किया । ये दोनों ही ग्रन्थ हिन्दी भाषा भाषी जगत के लिये जैनधर्म में प्रवेश करने और उसके वास्तविक स्वरूप और सिद्धांतों को समझने में अत्यन्त उपयोगी प्रमाणित हुए हैं ।
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