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________________ अध्याय ५८ “पूर्वजों की भूमि में पदार्पण" पिंडदादनखां से बिहार करके "कलश" नामा ग्राम में पधारे, कलश आपके पूर्वजों की जन्ममूमि थी, आपके पिता पितामह आदि सब पहले इसी प्राम में रहते थे। लहरा में तो आपके पिता ही आये थे। जिस समय आप कलश में गये उस समय वहां आपके सांसारिक परिवार के चचेरे भाई श्री मंगलसेन और प्रभदयालजी आदि मौजूद थे। उन्होंने आपका बड़े ही प्रेम और श्रद्धा से स्वागत किया तथा कुछ दिन ठहरने की प्रार्थना की परन्तु श्राप एक रात्रि से अधिक वहां नहीं ठहरे । ____ कलश से बिहार करके रामनगर पपनाखा, किला दीदारसिंह, गुजरांवाला, लाहौर, अमृतसर और जालन्धर होते हुए आप सपरिवार होशयारपुर पधारे और १६३८ का चतुर्मास वहीं पर किया। इस चौमासे में आपने गुजरांवाले में आरंभ किये गये जैनतत्त्वादर्श नामक ग्रन्थ को संपूर्ण कर दिया। . चौमासे के बाद बिहार करके जालन्धर, नकोदर, जीरा और मालेरकोटला श्रादि नगरों में विचरते हुए लुधियाने पधारे । यहां पर आपकी सेवा में आये हुए चार गृहस्थ युवकों को परमाईती भगवती जैनदीक्षा से अलंकृत करके चारों के क्रमशः श्री जयविजय, श्री अमृतविजय, श्री अमरविजय, और श्री प्रेमविजय ये नाम निर्दिष्ट किये । इनमें श्री अमरविजय और श्री जयविजय ये दोनों डभोई [बड़ोदा स्टेट] के निवासी श्रीमाली कुटुम्ब के थे और दोनों के नाम क्रमशः जयचन्द तथा अमरचन्द थे। श्री अमृतविजय जी दक्षिण महाराष्ट्र के रहने वाले श्रीमाल थे उनका पहला नाम अमृतलाल था और प्रेमविजयजी नारोवाल के दुग्गड़ गोत्रीय ओसवाल थे उनका गृहस्थपने का नाम प्रभदयाल था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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