________________
२३०
नवयुग निर्माता
लाला ठाकुरदास के आग्रह से महाराज जी साहब ने दो तीन प्रश्न लिखवा दिये और कहा इनका उत्तर उनसे पूछना । यदि हम से चर्चा करना चाहें तो हम तैयार हैं ।
कि
लाला ठाकुरदासजी उन प्रश्नों को लेकर स्वामी दयानन्द सरस्वती के पास पहुंचे और प्रश्नों का tara मांगा तो बात वही बनी जो कि महाराज श्री ने कही थी। तो भी ला० ठाकुरदास ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। प्रश्नों का उत्तर और महाराजश्री के साथ शास्त्रार्थ करने की चुनौती वे बराबर देते रहे । अन्त में महाराजश्री से शास्त्रार्थ करने का निश्चय भी हुआ और समय भी निश्चित किया गया परन्तु वे स्वामी दयानन्दजी उससे पहले ही परलोक सिधार गये अर्थात् वि० सं० १६४० में उनका देहान्त होगया इसलिये बात बीच की बीच ही रह गई । * गुजरांवाले से विहार करके आप पिंडदानस्त्रां में पधारे वहां पर अमृतसर निवासी ला० गोपीमल ओसवाल को साधु धर्म की दीक्षा दी और श्री हीरविजयजी का शिष्य बनाकर सुन्दर विजय यह नाम रक्खा ।
* इस विषय का सारा वृत्तान्त ला० ठाकुरदासजी ने उस समय एक ट्रैक्ट के रूप में लिखकर प्रकाशित करा दिया था, ट्रैक्ट का नाम " दयानन्द मुख चपेटिका" है पाठक देखना चाहें तो वहां देखलें । (लेखक)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org