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अध्याय ५४ "हठीसिंह की दीक्षा"
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इस अवसर में धांगध्रा (काठियावाड़) के रहनेवाले दो व्यक्ति अपने साथ साधु के उपकरण लिये हुए महाराज श्री आनन्दविजय जी के पास आये और बोले-कि महाराज हम दोनों को अभी दीक्षा देदो यदि नहीं दोगे तो हम स्वयं वेष पहर लेंगे। महाराजश्री ने तो उनके इस कथन की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया परन्तु उनके शिष्य श्री लक्ष्मीविजय जी ने दो तीन साधुओं को साथ लेकर किसी ग्राम में जाकर उन दोनों को दीक्षा देकर उनका मनोरथ पूर्ण कर दिया।
इधर उन्हीं दिनों में भावनगर का श्रीमाली हठीसिंह नाम का एक व्यक्ति भी महाराजश्री के पास दीक्षित होने के लिये आया हुआ था । उस समय होशयारपुर में कोटला के कई एक श्रावक भी आपके दर्शनार्थ आये हुये थे । उन्होंने गुरु महाराज से प्रार्थना की कि आप मालेरकोटला पधारने की कृपा करें और वहाँ पर ही इस भाग्यशाली हठीसिंह की दीक्षाबिधि का समारोह किया जावे ।
___ इच्छा न रहते हुए भी इन लोगों की विनती को मान देते हुए आपने होशयारपुर से विहार कर दिया और जालन्धर, लुधियाना होते हुए श्राप मालेरकोटला पधारे ।
इधर होशयारपुर में दिये गये दीक्षा सम्बन्धी वचन को सक्रिय रूप देने के लिये कोटला के श्रीसंघने दीक्षा की तैयारी करली अर्थात् समारोह पूर्वक दीक्षा विधि को सम्पन्न करने की जो जो सामग्र अपेक्षित थी उसका सारा प्रबन्ध करलिया।
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