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अध्याय ५२
"तीन सुयोग्य शिष्यों की उपलब्धि"
-टेट
आप श्री के स्वास्थ्यलाभ से सारे पंजाब और खासकर अम्बाला की जैनप्रजा को बहुत हर्ष हुआ ! घर घर में बधाइयें बंटी और मंगलाचार के गीत गाये गये तथा गरीबों की अन्नादि के वितरण से झोलिये भरी गई ! क्यों न हो गुरुदेव का स्वास्थ्य उसके धार्मिक जीवन का आधार स्तम्भ जो था ।
अम्बाला नगर का सद्भाग्य भी नितरां सराहनीय है, जहां उसे महाराज श्री श्रानन्दविजयजी के स्वास्थ्यलाभ का गौरवान्वित यश मिला वहां तीन सद्गृहस्थों को मुनिधर्म में प्रवेश करवाने का भी पुण्य अवसर प्राप्त हुआ।
भावनगर के वीर भाई बड़ौदे के छगनलाल और छोटा लाल नाम के तीन सद्गृहस्थ महाराज श्री आनन्दविजय जी के पास मुनिधर्म में दीक्षित होने की भावना से आये हुए थे उनकी दीक्षा भी बड़े समारोह से वहीं पर सम्पन्न हुई । गुरु महाराज ने इन तीनों सद्गृहस्थों को साधुधर्म में दीक्षित करने के बाद इन तीनों के क्रमशः श्री वीरविजय, श्री कान्तिविजय और श्री हंसविजय ये नाम रक्खे जो कि भविष्य में गुणनिष्पन्न ही प्रमाणित हुए। इन तीनों ही महानुभावों ने अपनी गुणगरिमा से आपके नाम को चार चान्द लगाये ! उपाध्याय श्रीवीरविजयजी प्रवर्तक श्री कान्तिविजयजी और शान्त मूर्ति श्रीहंसविजयजी सचमुच ही आप की शिष्य परम्परा के बहुमूल्य रत्न साबित हुए ।
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