________________
अध्याय ४६
"पंडित श्रद्धाराम से भेट"
श्री रामदित्तामल तो फिल्लौर से वापिस आगये प्रश्नों का उत्तर विना पाये । जब उन्होंने अपनी फिलौर यात्रा का अथ से इति तक सारा वृत्तान्त महाराज श्री आनन्द विजयजी को आकर सुनाया तो वे हंस पड़े और कहने लगे कि अच्छा कभी फिलौर जाना हुआ तो हम भी उनके दर्शन कर लेवेंगे परन्तु तुम वहां से क्या भावना लेकर आये ?
__रामदित्तामल-बस यही कि उनके पास इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था। उन्होंने येन केन उपायेन अपना पीछा छुड़ाने का यत्न किया है।
समय समय का काम करता है कुछ दिनों बाद विचरते विचरते आपका फिलौर में जाना होगया । आपके पधारने से पहले ही ला० रामदित्तामल ने पंडित जी को सूचना देदी कि महाराज श्री आनन्द विजयजी अमुक दिन फिलौर में पधार रहे हैं। आपको उनसे भेट करने का यह अच्छा अवसर है। श्री रामदित्तामल की सूचना को पाकर समय के जानकार पंडितजी ने रास्ते में ही आपका स्वागत किया और सीधे अपने मकान में ही ले आये, और एक अलग स्थान में आपको उतारा देदिया। फिलौर में उन दिनों किसी जैन गृहस्थ का आवास नहीं था, विहार करते हुए फिलौर में कोई जैन साधु रात्रि-निवास के लिये ठहरता तो वहां की एक सार्वजनिक छोटीसी धर्मशाला में आकर ठहर जाता और प्रातःकाल वहां से विहार कर जाता, परन्तु पंडितजी के सप्रेम आग्रह से महाराज श्री आनन्दविजयजी ने धर्मशाला की बजाय पंडितजी के स्थान में ही एक रात्रि निवास करना स्वीकार कर लिया।
आप जैसे त्यागशील श्रादर्श मुनिजनों का मेरे स्थान पर पधारना मेरे लिये बड़े ही अहोभाग्य की बात है । पंडितजी ने कृत्रिम सद्भाव प्रकट करते हुए नम्र शब्दों में निवेदन किया ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org