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________________ २१६ नवयुग निर्माता श्री श्रद्धानन्दजी - तुम्हारे इन प्रश्नों का उत्तर देना कुछ कठिन तो नहीं परन्तु तुम समझ नहीं पाओगे । रामदित्तामल - आप कृपा करके उत्तर तो दें समझने और न समझने की बात तो पीछे देखी जावेगी । अच्छा और न सही आप मेरे इस पहले प्रश्न का तो उत्तर देने की कृपा करें कि यदि शरीर से अतिरिक्त आत्मा नाम का कोई पदार्थ नहीं है तो विभिन्न कालीन ज्ञानों का एकीकरण करने वाला कौन है ? अथच बाल्यकाल में अनुभव किये हुए विषयों का वृद्धावस्था में स्मरण किसको होता है ? अनुभव और स्मृति का तो समान अधिकरण है, अर्थात् जिसको अनुभव होता है उसको ही स्मृति होती है, यदि केवल शरीर को ही आत्मा मान लिया जाय तो बाल्यावस्था का शरीर तो वृद्धावस्था में रहा नहीं तत्र स्मरण की संगति कैसे होगी ? श्रात्मा को शरीर से अतिरिक्त और एक मान लेने से तो इस शंका को अवकाश रहता नहीं, कारण कि बाल्यावस्था में जो आत्मा जिस वस्तु का अनुभव करता है वृद्धावस्था में भी उसी को स्मृति होती है। अनुभवकर्ता भी आत्मा है और स्मृति भी आत्मा को होती है क्योंकि वह एक है और अविनाशी है, परन्तु शरीर में यह संघटित हो नहीं सकता इस अबाधित युक्ति से आत्मा की स्वतन्त्र सत्ता ही प्रमाणित होती है । पं० श्रद्धानन्दजी- वाह भाई ! तुम तो बड़े होशयार हो गये हो मालूम होता है तुमको महात्मा जी खूब पढ़ाया है, परन्तु मैं तो इन प्रश्नों के सम्बन्ध में उन्हीं से बात चीत करूंगा, [ अपने अन्दर की कमजोरी को छिपाते हुए पंडितजी ने इतने मात्र से ही अपना पीछा छुड़ाने की कोशिश की ] । रामदत्तामल - अच्छा गुरुजी ! यदि आपका यही आग्रह है और मुझे आप इस योग्य नहीं समझते और उन्हीं से वार्तालाप करने की इच्छा रखते हो तब मुझे उन्हीं को लाने का यत्न करना होगा, परन्तु आप मेरे प्रश्नों का इस समय उत्तर देने में आनाकानी क्यों कर रहे हो इसका रहस्य मेरी समझ में नहीं आया और जो आया है उसे मैं भी व्यक्त करना नहीं चाहता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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