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________________ अध्याय ४५ "जोधपुर पधारने की विनति" पाटण से बिहार करके तारंगा जी में पधारे, यहां पर महाराजा कुमारपाल के द्वारा उद्धार किये गये विशाल जिन भवन में विराजमान श्री अजितनाथ स्वामी के दर्शन किये । वहां से बिहार करके पालनपुर, श्राबू, सिरोही, पंचतीर्थी आदि की यात्रा करते हुए पाली शहर में पधारे । इन पूर्वोक्त स्थानों में पधारने पर वहां की जनता ने आप श्री का जी भरकर स्वागत किया और आपके उपदेशामृत का पान करते हुए अपने सद्भाग्य की भूरि २ सराहना की। पाली में पधारने पर आपको जोधपुर के श्रावक वर्ग का एक पत्र मिला । उसमें आप श्री से जोधपुर पधारने की विनति करते हुए लिखा था कि यहां पर इस समय ढूंढ़क मतके ३५ साधु आपश्री से चर्चा करने के लिये एकत्रित हो रहे हैं और दीवान विजयसिंह जी महता को पंडित मंडली के साथ इस धर्म चर्चा में मध्यस्थ नियत करने का निश्चय हुआ है इसलिये आपश्री शीघ्र से शीघ्र जोधपुर पधारने की कृपा करें। यह समाचार मिलते ही आपने जोधपुर की ओर बिहार कर दिया। परन्तु जोधपुर में जिस दिन आप पधारे उसके दूसरे ही रोज ३४ साधु तो सभा होने से पहले ही बिना चर्चा किये चुपचाप पलायन कर गये और पैंतीसवां हर्षचन्द नामा साधु जो बाकी रह गया था उसने आपके पास आकर आपके विचारों का अनुसरण करते हुए शुद्ध सनातन जैनधर्म में दीक्षित होने का श्रेय प्राप्त किया । और आपश्री के आदेशानुसार श्री लक्ष्मीविजयजी (विश्नचन्दजी) को गुरु धारण किया । तब से आप लघु हर्ष विजय के नाम से सम्बोधित होने लगे। जिस समय आप-[मुनि श्री आनन्द विजयजी] जोधपुर में पधारे उस समय वीरभाषित प्राचीन जैन धर्म की बड़ी शोचनीय दशा थी । ढंढकों के अनिष्टाचरण से राज्य के भय से कितने एक ओसवालों ने अपने प्राचीन जैनधर्म को त्याग कर वैष्णवादि अन्य मतों में प्रवेश कर लिया था। उन लोगों को वापिस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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