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________________ २१२ नवयुग निर्माता सन्मार्ग पर लाने के लिये आपने १६३४ का चातुर्मास जोधपुर में ही करना उचित समझा । इस चतुर्मास में आपके प्रतिदिन के प्रवचनों ने मार्ग भ्रष्ट जनता को सन्मार्ग दिखाने में एक स्थायी प्रकाश का काम किया। उन्मार्गगामी जनता सन्मार्गगामी बनी । अन्धकारपूर्ण हृदय-गुफाओं में प्रकाश का दीपक जगा । ढुंढक पंथ को ही जिनधर्म समझने वालों को अपनी भूल सुधारने का समय मिला और इसी कारण से त्यागे हुए सुधर्म को फिर से अपनाने का सद्भाग्य भी प्राप्त हुआ । फलस्वरूप जहां पहले जिनधर्म का अनुसरण करनेवाले मात्र ५० घर रह गये थे वहां फिर से ५०० के करीब हो गये । यह था आपके विशिष्ट व्यक्तित्त्व का अपूर्व प्रभाव । सत्य है-तमसःकुतोऽस्तिशक्तिः दिनकर किरणाग्रतः स्थातुम्” अर्थात् अन्धकार में यह शक्ति कहां ? जो सूर्य किरणों के सामने ठहर सके । ऐसे परम मनीषी परमतपस्वी महापुरुष के पधारने से जोधपुर की ओसवाल जनता को अपने खोये हुए धर्मधन को पुनः प्राप्त करने का जो अवसर मिला वह उसके सद्भाग्य को ही अाभारी है । JARURN Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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