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________________ अध्याय ४४ "संघ के साथ पुनः तीर्थयात्रा" चातुर्मास सम्पूर्ण होने के बाद बहोरा अमरचन्द जसराज झवेरचन्द की तर्फ से तीर्थयात्रा के लिये एक संघ निकाला गया उसमें तीर्थयात्रा के लिये साथ पधारने की संघपति की ओर से प्रार्थना करने पर आप शिष्यवर्ग के साथ पुनः तीर्थयात्रा के लिये पधारे । ___ श्री शत्रुजय ,तलाजा, डाढ़ा, महुआ, दीप, प्रभास पाटण, वेरावल, और मांगरोल आदि स्थानों में देव दर्शन करते हुए जूनागढ में श्री गिरनार तीर्थ पर विराजमान प्रभु नेमिनाथ के दर्शन करके जामनगर पधारे, वहां भावनगर के श्रीसंघ ने आपसे पुनः भावनगर पधारने की विनति की परन्तु आपने पंजाब में जाकर अपने हाथ के लगाये हुए धर्म पौदे को सिंचन करने तथा आरम्भ की हुई धार्मिक क्रन्ति को सक्रिय बनाने के लिये पुनः भावनगर पधारने से इनकार कर दिया और संघसे अलग होकर पंजाब की तर्फ जाने के लिये मोरवी, ध्रांगध्रा और मिझुवाड़ा होकर संखेश्वर ग्राम में पधारे, वहां पर विद्यमान श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की प्रभावशाली भव्यमूर्ति के दर्शन करके आप और आपके शिष्य वर्ग ने बड़ा आनन्द प्राप्त किया। वहां से विहार करके आप गुजरात के प्रसिद्ध नगर पाटण में पधारे, यहां के प्राचीन पुस्तक भंडारों का निरीक्षण किया और कितने एक अलभ्य ग्रन्थों की नकलें भी करवाई। श्री संत्रेश्वर पार्श्वनाथ की यह मूर्ति अत्यन्त प्राचीन समय की मानी जाती है । यह मूर्ति शंखपति श्रीकृष्णवासुदेव को धरणीन्द्र की अाराधना से प्राप्त हुई थी। इसके स्नात्र जल के छिडकने से "जरासिन्ध" नामा प्रतिवासुदेव की जरा विद्या का प्रभाव वृष्ण वासुदेव की सेना से दूर हुअा था इतना इस मूर्ति का प्रभाव बतलाया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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