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भावनगर के राजा से मिलाप और वेदान्त चर्चा
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लो हमने तो अपनी शास्त्र-सम्मत विचारधारा के अनुसार इस प्रश्न का यथामति समाधान कर दिया है । अब हमारे आवश्यक दैनिक कर्तव्य का समय निकट आगया है, इसलिये अब हम यहां से चलते हैं।
राजा साहब-महाराज! आपकी भी इस अनन्य कृपा का मैं बहुत २ आभारी हूँ । स्वामी आत्मानन्दजी (सप्रेम आलिंगन करते हुए) आपने बड़ी कृपा की जो यहां पधारे, आपको मिलकर बहुत प्रसन्नता हुई आपकी सज्जनता और सप्रेम वार्तालाप बहुत समय तक याद रहेगा।
तदनन्तर राजासाहब ने नमस्कार करते हुए कहा-महाराज ! आपश्री का जब कभी फिर यहां पधारना हो तो मुझे अवश्य सूचना दिलाने की कृपा करें । ताकि मुझे भी दर्शन का लाभ प्राप्त हो सके।
नमस्कार के उत्तर में धर्मलाभ देते हुए "जैसा भाविभाव" कहकर आप वहां से सम्मानपूर्वक विदा हुए ।
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