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नवयुग निर्माता
अपने लिये जैसा चाहें कर सकते हैं। आप श्री के गुरु होने के नाते वे हमारे लिये भी वन्दनीय और पूज्यनीय होंगे मगर हमारे गुरुदेव तो आप ही हैं और रहेंगे । यह हम सब का अटल निश्चय है और हम इसपर दृढ़ हैं और सदा रहेंगे ।
श्री आत्मारामजी - अच्छा भाई ! यदि तुम लोगों का ऐसा ही भाव है तो मैं उसमें किसी प्रकार की बाधा उपस्थित नहीं करूंगा ।
महाराज श्री आत्मारामजी का यह विचार कानों कान अहमदाबाद की सारी जैन जनता में फैलगया, और विचारशील लोग आपकी इस उदार मनोवृत्ति की भूरि २ सराहना करने लगे । इतने बड़े ज्ञानी पुरुष का इस हद तक निरभिमान होना कोई सहज बात नहीं है। कंचनकामिनी का त्याग इतना कठिन नहीं जितना कि मान बड़ाई और ईर्षा का त्याग करना कठिन है, धन्य है ऐसे सत्यनिष्ट महापुरुष को । इस प्रकार अहमदाबाद की जैन जनता में आपका गुणानुवाद होने लगा ।
जिस समय महाराज श्री आत्मारामजी के इस शुभ विचार का पता श्री बुद्धिविजयजी महाराज को लगा तो उनका हृदय हर्षातिरेक से भर गया और वे मन ही मन में कहने लगे - श्रात्माराम, नहीं नहीं धार्मिक क्रांति का जन्मदाता परम मेधावी परमतपस्वी युगपुरुष मेरा शिष्य बनेगा और मैं उसका गुरु, कितने हर्ष और सद्भाग्य की बात है मेरे लिये । जिसको ऐसे शिष्य रत्न की प्राप्ति हो वह गुरु भी निस्सन्देह भाग्यशाली है। मालूम होता है मेरे उन शुभ विचारों को व्यावहारिक रूप प्राप होने का अवसर गया जो कि अभी तक मेरे हृदय में ही अव्यक्त रूप से अवस्थित हैं । पंजाब के हर एक नगर और ग्राम में गगनचुम्बी विशाल जिन मन्दिर हो और वह प्रतिदिन, श्रद्धापूरित हृदय से दर्शन और सेवा पूजा करने वाले श्रमणोपासकों की स्तुति गाथाओं से निनादित हो रहा हो ! तथा बालक और बालिकाओं की धार्मिक शिक्षा के लिये जैन पाठशाला और कन्याशालायें हो। इसके अतिरिक्त प्राचीन जैन परम्परा के शास्त्रीय साधु वेष से सुसज्जित विद्वान साधुओं का निरन्तर भ्रमण हो और उनके सदुपदेशों से जनता के अबोध पूर्ण हृदयों में सद्बोध का उदय हो, जिससे कि वे इस ढूंढ पंथ के व्यामोह से छुटकारा पाकर सत्य सनातन जैन धर्म के झंडे तले एकत्रित होकर अपने मानव भव को सुधारने का श्रेय प्राप्त करें । सारांश कि ढूंढक पंथ के अन्धकार से व्याप्त हुई पंजाब की वीर भूमि वीर भाषित सत्य धर्म के सूर्योदय से प्रकाश प्राप्त करती हुई पहले की भांति एक बार फिर जगमगा उठे, बस यही मेरा हृदय निहित चिरन्तन संकल्प है जिसकी पूर्ति की सदिच्छा से मैं तक जीवित हूँ । परन्तु इस कार्य को इधर का कोई व्यक्ति करे या करसके इसकी तो न पहले कोई आशा थी और न अब सम्भावना है ।
तब मेरे विचारानुसार तो इस कार्य को श्री आत्माराम जैसा कोई विशिष्ट ज्ञान सम्पन्न और प्रभावशाली युग पुरुष ही करे तो करसकता है अन्य किसी साधारण साधु की शक्ति से यह बहुत दूर है ।
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