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________________ २२३ २२४ २२५ २२६ २२७ २२८ २२६ २३१ ५२-तीन सुयोग्य शिष्यों की उपलब्धि । ५३-श्री हंसविजयजी के पिता का आगमन ५४-हठीसिंह की दीक्षा ५५-श्रेयासिं बहुविघ्नानि ५६-सफलता की शुभ घड़ी (क) मालेर-कोटला में दीक्षा का प्रकरण (ख) जैन तत्वादर्श की रचना ५७-सत्यार्थ-प्रकाश की चर्चा ५८-पूर्वजो की भूमि में पदार्पण ५-स्वमत संरक्षण की ओर (क) जैन तत्वादर्श का प्रकाशन (ख) अज्ञानतिमिर भास्कर का आरम्भ ६:-सतराभेदी पूजा की रचना ६१-पंजाब में पांच वर्ष ६२-पुनः गुजरात की ओर ६३-बीकानेर दरबार से भेट ___ (अनेकान्तवाद का विशद् निरूपण ) ६४-जोधपुर का आमंत्रण ६५-मिलाप में दैव का हस्तक्षेप ६६-श्री प्रतापसिंहजी से वार्तालाप ६७-आस्तिक नास्तिक शब्द का परमार्थ ६८-अनीश्वर वाद भी नास्तिकता का कारण नहीं। ६६-शिष्य वियोग ७७-अहमदाबाद में चातुर्मास ७१-थानापतियों की सज्जनता ७२-फिर सिद्धगिरी की यात्रा को ७३-लीबड़ी के राजा साहिब से भेट ( ईश्वर कर्तृत्व की शास्त्रीय चर्चा ) ७४-खंभात और भरुच आदि तीर्थ स्थानों की यात्रा । ७५-सूरत का चातुर्मास २३४ २३५ २३६ २३८ २४६ २५१ २५३ २५६ २५६ २६६ २६७ २६६ २७३ २८२ २८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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