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पीली चादर
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करजी । बस फिर क्या था, गिरिराज की यात्रा में जाने वाली जैन महिलायें दूर रहकर श्रद्धापूरित हृदय से
आपको वन्दना करतीं और आपको आते देख दूर से ही रास्ता छोड़कर एक तरफ खड़ी हो जातीं। सत्य है"जमात में ही करामात होती है" जहां पर अधिक संख्या में पीली चादर ओढ़ने वाले साधु साध्वी ही त्यागी वर्ग में गिने जाते हों तथा पीली चादर को साधु के वेष में मुख्य स्थान प्राप्त हो वहां किसी सफेद कपड़े वाले त्यागी साधु के वेष की समानता से परिग्रह रखने वाले गोरजी-यतिजी समझना कोई अस्वाभाविक नहीं है । अतः महाराज श्री आत्माराम और उनके साधुओं को पीली चादर ओढ़नी पड़ी।
तीर्थराज श्री सिद्धाचल की यात्रा का यथेष्ट लाभ प्राप्त करने के बाद -श्री आत्मारामजी ने सब साधुओं के साथ फिर अहमदाबाद के लिये प्रस्थान किया। श्री पालीताणा से बिहार करके आप भावनगर में पधारे । भावनगर की जैन जनता ने बड़े समारोह से आपका सप्रेम स्वागत किया वहां से बिहार करके वला, पच्छेगाम, लाखेणी, लाठीधर, बोटाद, राणपुर, चुड़ा और लींबडी आदि ग्रामों में विचरते, और सैंकडों जिनमन्दिरों की यात्रा करते तथा भाविक जनता को सद्बोध देते हुए फिर अहमदाबाद पधारे ।
अहमदाबाद की जनता आपके आगमन की बड़ी आतुरता से राह देख रही थी । इसलिये आपश्री के स्वागत में उसने पूरा सहयोग दिया।
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