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________________ अध्याय ३८ "पीली चादर" एक दिन जब आप साधुओं के साथ यात्रा करने के लिये ऊपर चढ़ रहे थे तो उस समय यात्रा मित्त बाहर से हुई बहुत सी गुजराती बाइयें भी साथ २ ऊपर चढ़ रही थीं। उनमें से दो चार बाइयों को साधुओं के अत्यन्त समीप से होकर चलते देख साधु श्री चम्पालाल ने कहा- बद्दन ! जरा विवेक से चलो ताकि साधुओं से तुम्हारा संघट्टा न हो, एक दूसरी बाई को साधुओं के बीच में निकल कर जाते देख दूसरे साधु 'कहा - माता ! क्या कर रही हो, तुमको साधुओं के संघट्टे का ख्याल रख कर चलना चाहिये । इतने में एक अन्य बाई आगे बढ़कर बोली - "महाराज ! तमने शूंछे तमेतो गोरजी छो न ? संघाना दोष तो साधु ने लागे ? इस पर चम्पालालजी ने कहा- बहन हम साधु हैं, गोरजी- यति नहीं हैं । एक तीसरी बाई - तमे वा साधु ? त्यागी साधु संवेगी होय छे जेना पीला कपड़ा होय छे तमे तो धौला कपड़ा वाला गोरजी जेवा देखाओ छो ? तात्पर्य की गुजरात में जितने यतिलोग थे वे इन पंजाबी साधुओं जैसे सफेद कपड़े पहनते और परिग्रह धारी होने से लोग न तो उन्हें साधु समझते और नाही उनसे बाइयें स्पर्शास्पर्शी का ध्यान रखतीं । इसलिये जो त्यागवृत्ति वाले जितने संवेगी साधु थे उनके ऊपर पीली चादर होती, ताकि परिग्रहधारी यतियों से वे जुदे दिखाई पडें । यही कारण था कि गुजराती जैन महिलायें इन के संघट्टे की पर्वाह नहीं करती थीं । उस रोज ऊपर से यात्रा करके जब श्री आत्मारामजी सब साधुओं के साथ नीचे आये तो उन गुजराती बाइयों के कथन की चर्चा होने लगी, महाराज श्री आत्मारामजी ने फरमाया कि मेरा तो यही विचार था कि अपने सफेद कपड़े ही रक्खेंगे, पीली चादर नहीं ओढेंगे परन्तु यहां की प्रवृत्ति और व्यवहार को देखते हुए हमें भी पीली चादर करनी पड़ेगी, अन्यथा परिग्रहधारी यतियों की गणना में आना पड़ेगा । इससे परमार्थ न समझने वाले गृहस्थों में भ्रान्तधारणा उत्पन्न होने का सम्भव है । अत: हमें भी पीली चादर नी चाहिए। आपके इस कथन का सब साधुओं ने समर्थन किया और सबने अपनी चादरें पीली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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