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श्री सिद्धाचल की यात्रा के लिये
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इसके अतिरिक्त पंजाब प्रदेश में शास्त्राभ्यास कराते समय मैंने तुम लोगों को जिन प्रतिमा के सम्बन्ध में शास्त्रीय और ऐतिहासिक दृष्टि से जो कुछ बतलाया था, उसके विषय में तो शायद अब तुम लोगों के मन में किसी प्रकार के सन्देह को स्थान नहीं रहा होगा। इस बिहार यात्रा में जिन २ महान तीर्थों की यात्रा का पुण्य अवसर मिला और मार्ग में आनेवाले विशाल जिन भवनों तथा भव्य जिन बिम्बों का अलौकिक आतिथ्य इन नेत्रों को प्राप्त हुआ, उससे प्राचीन जैन परम्परा में जिन प्रतिमा की उपासना को कितना महत्व प्राप्त है, यह अनायास ही प्रमाणित हो जाता है और उसके साथ ही यह भी सिद्ध हो जाता है कि उसके उत्थापक समाज को श्रमण भगवान महावीर की परम्परा में कोई स्थान नहीं । इन विचारों के साथ ही सब साधुओं को साथ लेकर श्री आत्मारामजी पहाड़ से नीचे उतरे और जिस स्थान में ठहरे थे वहां पहुंच गये । यद्यपि ऊपर से नीचे आने को किसी भी साधु का मन नहीं करता था, परन्तु रात्रि को ऊपर किसी यात्री का ठहरना नहीं होता इसलिये विवश होकर सब को नीचे आना पड़ा।
नीचे उतर कर आहार पानी के बाद सायंकाल का प्रतिक्रमण करके तीर्थराज की महिमा और गुणगान करते हुए रात्रि को सबने शयन किया मन में प्रातःकाल सूर्योदय के साथ फिर ऊपर चढ़कर श्री आदिनाथ भगवान के पुण्य दर्शनों की पुनीत भावना को लेकर ।
प्रातःकाल होते ही प्रतिक्रमण और प्रतिलेखनादि साधु की आवश्यक क्रिया से निवृत्त होकर सब साधुओं के साथ श्री आदिनाथ भगवान के दर्शनार्थ आप फिर पहाड़ पर चढ़े और सब मन्दिरों के दर्शन करके फिर नीचे उतर आये । इसी प्रकार निरन्तर कई दिनों तक यात्रा करते रहे।
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RAMA
HTRADI 5mm
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