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अध्याय ३५
"अपूर्व स्वागत"
-SA:अहमदाबाद गुजरात की जैन नगरी कही जाती है इसमें अनुमान जैनों के सात हजार घर और ५०० के करीब जैन मन्दिर हैं । पाली से अहमदाबाद तक साथ में आने वाले दोनों श्रावकों ने जब नगर सेठ श्री प्रेमाभाई हेमाभाई को महाराज श्री आत्मारामजी के अहमदाबाद पधारने का शुभ समाचार दिया तो वे प्रसन्नता से गद्गद हो उठे ! और सारे जैन समुदाय को समाचार कहला भेजा। समाचार मिलते ही थोडी सी देर में नगर सेठ के वहां सव भाविक स्त्री पुरुष एकत्रित हो गये । श्रीयुत नगर सेठ और उनके सहचारी सेठ दलपतभाई भग्गूभाई आदि अनुमान तीन हजार श्रावक श्राविकाओं के समुदाय ने अहमदाबाद के बाहर तीन कोस की दूरी पर आगे चलकर महाराज श्री आत्मारामजी का सहर्ष स्वागत किया और विधि पूर्वक वन्दना नमस्कार करने के बाद बड़ी धूमधाम से नगर में प्रवेश कराया ! और सेठ दलपत भाई के बंगले में ठहराया। वहां पर दर्शनार्थ आई जनता की भीड़ और भी अधिक हो गई । जनता आपके वचनामृत का पान करने के लिये अधीर हो रही थी, तब नगर सेठ की प्रार्थना से आपने थोड़ा समय अपने वचनामृत का पान कराकर उसे तृप्त किया।
श्री नगरसेठ और उनके साथी सेठ श्री दलपत भाई ने आप श्री को सम्बोधित करते हुए कहाकि महाराज ! बहुत समय से आपश्री के दर्शनों की अभिलाषा हो रही थी, आज का दिन हमारे जीवन में सबसे अधिक भाग्यशाली है ! आप जैसे सत्यनिष्ठ चारित्रशील महापुरुषों के पुनीत दर्शन किसी पूर्वकृत विशिष्ट पुण्य उदय से ही प्राप्त होते हैं ! अतः आज हम अपने सद्भाग्य की जितनी भी सराहना करें उतनी कम है ! इस प्रकार दोनों महानुभावों ने अपना हार्दिक भक्तिभाव प्रदर्शित किया और धर्म प्रवचन का समय निश्चित करने के बाद आहार पानी की विनती की।
दूसरे दिन आपके प्रवचन सुनने की अभिलाषा रखनेवाला श्रावक एवं श्राविकावर्ग नियत समय से पहले ही व्याख्यान सभा में उपस्थित हो गया। जिस समय आप सभा में पधारे तो सबने जयध्वनि से
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