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अध्याय ३४
"विहार यात्रा में तीर्थ यात्रा"
लुधिया से विहार करते समय सर्व सम्मति से जो कार्यक्रम निश्चित हुआ था उसमें मुख्य दो बातें थीं (१) ढूंढ़क मत के साधु वेष को त्यागकर प्राचीन जैन परम्परा के साधु वेष को विधिपूर्वक धार करना (२) श्री शत्रुञ्जय और गिरनार आदि प्राचीन तीर्थों की यात्रा करना । इसी सद्विचारणा को मुख्य रखकर लुधियाने से अहमदाबाद की तरफ प्रस्थान किया गया था । रास्ते में आने वाले अनेक जैन तीर्थों की यात्रा का लाभ प्राप्त करते हुए अहमदाबाद पहुंचने के लिये निर्धारित किये गये कार्यक्रम के अनुसार जब आप सब साधुओं के साथ पाली में पधारे तो सर्व प्रथम आपने पाली में विराजमान श्री नवलक्खा पार्श्वनाथ स्वामी के पुनीत दर्शनों से अपने को पुण्यशाली बनाने का श्रीगणेश किया। वहां से विहार करके वरकाणा ग्राम में श्री वरकाणा पार्श्वनाथ और नाडोल में श्री पद्मप्रभु तथा नाडलाई में श्री ऋषभदेव स्वामी के दर्शन किये।
एवं घाणेराव में श्री महावीर स्वामी और सादड़ी तथा $ राणकपुर में श्री ऋषभदेव के दर्शनों से अपने को कृतार्थ किया वहां से आप सिरोही पधारे और वहां पर एक ही आधारशिला पर बनाये गये १४ जिन मन्दिरों के दर्शनों का लाभ प्राप्त करके ग्रामानुग्राम विचरते हुए जैन परम्परा के परम विख्यात तीर्थ क्षेत्र श्री आबूराज में पधारे और सर्व साधुओं के साथ वहां की यात्रा करके आपको जो आनन्द प्राप्त हुआ उसका उल्लेख इस क्षुद्र लेखिनी की शक्ति से बाहर है। श्री आबूराज देलवाड़ा के जिनमन्दिरों की यात्रा करके वहां से श्री अचलगढ़ तीर्थ की यात्रा के लिये गये यहां के भव्य चैत्यालयों में १४४४ मण सोने की १४ जिन प्रतिमायें हैं उनके दर्शन करते ही सब साधुओं को अपूर्व आनन्द की प्राप्ति हुई और सबके सब श्री आत्मारामजी के चरणों का स्पर्श करते हुए अपने सद्भाग्य की भूरि २ सराहना करने लगे । श्री विश्नचन्दजी ने हाथ
$ श्री शरणकपुर मरुस्थली का प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र है ।
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