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________________ अध्याय ३१ "येक परिवर्तन का विचार" होशयारपुर के चतुर्मास के बाद श्री आत्मारामजी और उनके सहयोगी विश्नचन्दजी आदि सब साधु लुधियाने में आकर इकट्ठे हो गये । महाराज श्री आत्मारामजी के सत्यनिष्ठा और आत्म बल पर अवलम्बित क्रान्तिकारी धार्मिक आन्दोलन ने ढूंढक मत के अभेद्य किले को छिन्न भिन्न कर दिया। उसकी बड़ी २ दीवारें गिर पड़ी। और उसके आलोकरहित प्रदेश में बन्द की हुई अबोध जनता को प्रकाश की किरणें देकर वहां से निकालने में जिस वीरोचित साहस का परिचय दिया है वह जैन परम्परा के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में उल्लेख करने योग्य है। लगभग दश वर्ष के [ १९२१ से १६३१ तक के ] इस क्रान्तिकारी धार्मिक आन्दोलन में उन्हें जो सफलता प्राप्त हुई उसकी साक्षी पंजाब के गगन चुम्बी अनेकों जिनालय और उनके सहस्रों पुजारी प्रत्यक्षरूप में दे रहे हैं। ___ पाठकों को इतना स्मरण रहे कि इस क्रान्तिकारी धार्मिक आन्दोलन में आरम्भ से लेकर आज तक [सं० १९३१ तक] महाराज श्री आत्मारामजी और उनके सहयोगी श्री विश्नचन्दजी आदि साधुओं ने ढूंढक मत के वेष का परित्याग नहीं किया था। ढंढक मत के वेष में रहते हुए ही उन्होंने यह धार्मिक क्रान्ति फैलाई और उसमें सफल हुए। पंजाब प्रान्त के प्रत्येक नगर और ग्राम में जिन शासन की पुनीत ध्वजा को प्रतिष्ठित करने के बाद जिन शासन के इन अनन्योपासकों का लुधियाने में सम्मेलन हुआ और उसमें श्री विश्नचन्दजी ने भावि कार्यक्रम का निश्चय करने के लिये प्रस्ताव उपस्थित करते हुए महाराज श्री आत्मारामजी को सम्बोधित करके कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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