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________________ तुम नही मिलने का नियम लो पूज्यजी साहब - हरकत का तुमको अभी तक पता ही नहीं लगा ? अपने कई एक साधु उसके गुन गाने लग गये और सैंकड़ों गृहस्थ उसके बन गये, अभी न मालूम आगे को वह क्या करे ? श्री विश्नचन्दजी -- ( मन ही मन में) - जिनके सामने आप अपना रोना रो रहे हैं, वे तो मनसे सर्वेसर्वा महाराज आत्मारामजी के बने हुए हैं, भविष्य में आत्मारामजी क्या करेंगे इसे हम लोग जानते हैं । उनके सदुपदेश से इसी पंजाब भूमि में पचासों जिन मन्दिर बनेंगे। हजारों उनकी पूजा सेवा करनेवाले होंगे और यह देश सत्य सनातन जैनधर्म के प्रचार में मुख्यस्थान ग्रहण करेगा ।” (प्रकट रूप में) तो महाराज ! आप क्या चाहते हैं ? १६१ पूज्यजी साहब - बस यही कि तुम आत्माराम से मिलना छोड़ दो ! श्री विश्नचन्दजी - बहुत अच्छा महाराज ! यदि आपकी यही इच्छा है तो हम उनसे नहीं मिला करेंगे ? पूज्यजी - अच्छा तो "उनसे न मिलने का नियम लो !" श्री विश्नचन्दजी (मन में) ये तो हमें उनसे न मिलने का नियम कराते हैं और हम सदा उनके चरणों में बैठे रहना चाहते हैं, वह दिन हमारे लिये धन्य होगा जब कि हम उनके प्रतिदिन के प्रवचन से उत्तरोत्तर अपनी आत्मा को सद्गति का भाजन बनाने का श्रेय प्राप्त करेंगे। जो नियम हृदय से न किया जावे और जिसके करने की सर्वथा अनिच्छा हो ऐसा नियम यदि कोई आप सरीखा - "पूज्य अमरसिंहजी जैसा" जबरदस्ती दिलाने का यत्न करे तो उसकी क्या कीमत होगी ? कुछ भी नहीं । परन्तु यदि हम इस समय इनकार कर दें तो हमारे निर्धारित कार्य में क्षति पहुँचने का संभव है आज हम गुप्तरूप से धर्म का प्रचार कर रहे हैं और उसमें हमें जो आशातीत सफलता प्राप्त हुई है उसमें विघ्न पड़ जावेगा, इसलिये जैसा कुछ ये कहते हैं, तो उसी को बिना ननु नच के स्वीकार कर लेना चाहिये । - “स्वकार्यं साधयेद्धीमान, कार्यभ्र ंशो हि मूर्खता” (प्रकट रूप में ) - अच्छा महाराज ! यदि आप इसी में प्रसन्न हैं तो हम उनसे नहीं मिलेंगे । इतना कहकर श्री विश्नचन्दजी आदि साधुओं ने विहार कर दिया और जगरावां में पहुंचकर श्री आत्मारामजी के पास न ठहर कर अलग किसी दूसरे मकान में ठहर गये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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