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________________ अध्याय २३ पूज्याजी साहक के आदेश का सत्कार -: :अपने प्रतिदिन के व्याख्यान में पूज्यजी साहब श्री आत्मारामजी के विरुद्ध बहुत कुछ बोलते रहे, अपने भक्तों को मूर्तिपूजा के विरुद्ध उकसाने का उन्होंने भरसक प्रयत्न किया । जब वे जीरा से विहार करने लगे तो उन्होंने वहां पर उपस्थित गृहस्थों से कहा-देखो भाई तुम ने एक बात का पूरा ध्यान रखना । हम आज यहां से विहार कर रहे हैं और सुना है कि आज या कल यहां पर आत्माराम आने वाला है । एक सद्गृहस्थ-हां महाराज ! सुना तो है कि वे आज या कल ज़ीरा में पधारने वाले हैं। पूज्यजी साहब-तो तुम लोगों ने उसके पास नहीं जाना । और श्राहार पानी आदि से भी उसका सत्कार नहीं करना । क्योंकि उसकी श्रद्धा भ्रष्ट हो गई है । पूज्यजी साहब के इस कथन को सुनकर सब गृहस्थ प्रायः अवाक् से रह गये किसी ने हां या नां नहीं कही और कितने एक विचारशील तो बड़ी असमंजस में पड़ गये और मन ही मन में सोचने लगे कि यह माजरा क्या है ? हम पर इतना बन्धन क्यों डाला जा रहा है ? आत्मारामजी महाराज जैसा प्रतिभाशाली और ज्ञान सम्पन्न चारित्रशील तो इस सारे समाज में कोई साधु नहीं । फिर उनके पुण्य सहवास में आने से हमें जो रोका जाता है यह तो सरासर अन्याय है। इतने में एक श्रावक [जिस का नाम इस समय स्मरण में नहीं आता] जो कि कुछ पढ़ा लिखा और बुद्धिमान था एवं दो चार वार श्री आत्मारामजी के पास आ जा भी चुका था-हाथ जोड़कर बोला-महाराज ! यदि श्राज्ञा हो तो जो कुछ आपने फरमाया है उसके विषय में कुछ पूछना चाहता हूँ। पूज्यजी साहब-पूछो! खुशी से पूछो ! श्रावक-क्यों महाराज ! आत्माराम जी कोई ऐसे भयंकर विषैले या कारखाने वाले जीव हैं कि उनके पास जाने से आपको हम लोगों के प्राणों की हानि की संभावना हो रही है और उसी से बचाने की खातिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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