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________________ आदर सत्कार किया, परन्तु क होने की श्र बोले- तूं ले या तो इ १ हुए आपके । लीजिये पुरु उनका कथन किसी तरह चल दिये २ 7 छिन्न भिन्न बिछाया था Jain Education International पूज्यजी साहब से भेट ॥ आदि लिखाकर साधुता के आदर्श को अधिक उज्ज्वल बनाने का भी स्तुत्य प्रयास है कि आप इसमें सफल नहीं हो पाये। इस विफलता से आपको और भी असह्य है जिसका मुझे अधिक खेद है । १४५ की इन बातों का कुछ भी उत्तर न देते हुए पूज्यजी साहब क्रोध के आवेश में नेता फिरता है कि "अमर सिंह मेरी रोटी और वंदना वगैरह बन्द करा रहा है" प्रमाणित कर अन्यथा अठाई आठ व्रतों का दण्ड ले | मजी - इसके लिये तो कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं, देश देशान्तरों में भिजवाये की बात को सत्य प्रमाणित कर रहे हैं। इन पर भी यदि आपको सन्तोष न हो तो, - आपके परम भक्त ला मोहनलाल और छज्जूमल ने यह समाचार दिया है, यदि आप दण्ड लें। और यदि उन्होंने झूठ बोला है तो आप उनको दण्ड दें । मेरे पर तो ड लागू नहीं हो सकता । अमरसिंहजी निरुत्तर हो गये और क्रोध के आवेश में कुछ बड़बड़ाते हुए आगे 5 साथ । मारामजी भी यहां से चलकर जीरा में पधारे, विपक्षियों के बिछाये हुए माया जाल को ये । इधर जीरा में कुछ दिन रहकर पूज्य श्री अमरसिंहजी ने अपना जो बिछौना त्मारामजी ने जाते ही लपेट दिया। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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