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________________ १३८ नवयुग निर्माता तावद् गर्जति खद्योत - स्तावद् गर्जति चन्द्रमाः । उदिते तु सहस्रांशौ न खद्यो न चन्द्रमाः ॥ 11 अर्थात् खद्योत-जुगनु-टटाणा तबतक ही अपनी रोशनी पर इठलाता है और चन्द्रमा भी तबतक अपने प्रकाश पर गर्व करता है जबतक कि ज्वालामाली सूर्य का उदय नहीं होता जब वह उदय हो जाता है। तो खद्योत और चन्द्रमा दोनों का ही पता नहीं चलता । इस प्रकार देहली में कुछ दिन ठहर कर वहां से आप ने बडौत को विहार किया, बडौत आने पर आपको पूज्य अमरसिंहजी के पत्र की चर्चा सुनाई दी - जिस में लिखा था कि "आत्मारामजी की श्रद्धा अपने ढूंढ मत पर से उठाई है इसी कारण पूज्यजी साहब अमरसिंहजी ने इनको पंजाब देश से निकाल दिया है, आप लोग भी अब इनका आदर सत्कार न करें" इत्यादि । पत्रगत समाचार सुनकर आप हंस पड़े और मन ही मन कहने लगे कि ये लोग साधु होकर भी कितना झूठ बोलते हैं और अपनी गद्दी को कायम रखने के लिये किस प्रकार के षड्यंत्र रचते हैं धिक्कार है ऐसी मनोवृत्ति पर ! पत्रगत शब्दों का ध्यान करते हुए - "इनको पूज्यजी साहब अमरसिंह ने पंजाब से निकाल दिया है" कितना झूठ ! कितनी लोकवंचना ! अच्छा, अब पंजाब की ओर ही प्रस्थान करना होगा वहां चलकर देखूंगा कि पूज्य साहब कितने पानी में हैं। सत्य का पुजारी अकेला ही सब पर भारी होता है । इस प्रकार मनोगत विचार करने के अनन्तर पास में बैठे हुए कतिपय गृहस्थों को सम्बोधित करते हुए बोले- भाइयो! यह बात बिलकुल सत्य है कि मैं श्रमण भगवान् महावीर के धर्म का पुजारी हूँ न कि लौंका और लवजी के पंथ का । कोई समय था जब कि मैं इस पंथ को ही वीरप्रभु के धर्म का प्रतिनिधि समझता था और उसी का उपदेश तथा आचरण करता था, परन्तु जब मैंने व्याकरणादि शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद जैनागमों का उनके नियुक्ति भाग्य और टीका आदि पूर्वाचार्यों के लिखे हुए ग्रन्थों पर अवलोकन किया तो मुझे इस पंथ का एक भी आचार विचार श्रागमसम्मत देखने में नहीं आया । केवल बत्तीस मूलसूत्रों की रट लगाकर उनका मनमाना अर्थ करके भोले जीवों को उन्मार्ग की ओर लेजाने वाले इन निरक्षर भट्टाचार्यों पर मुझे अब दया आती है । आप लोग मात्र अन्धश्रद्धालु न बनकर विचारशील न का यत्न करो। कुछ लिखो पढ़ो और तटस्थ मनोवृत्ति से सत्यासत्य का विचार करो। मैं ने तो वीतराग देव के धर्म को समझने और उसे अपनाने के लिए सिर मुंडाया है किसी पंथ विशेष के लिये नहीं । पूज्यजी साहब कहते हैं कि हमने आत्माराम को पंजाब देश से निकाल दिया है, उनके इस कथन का कितना मूल्य है यह समझने और समझाने के लिये अब मैं इधर का भ्रमण छोड़कर सीधा पंजाब की ओर ही विहार कर रहा हूँ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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