________________
-
-
विरोधी दल का सामना
कहना ही क्या ? प्रथम दिन के ही व्याख्यान में श्रोताओं को इतना आनन्द पाया कि सब गद्गद् हो उठे और व्याख्यान की समाप्ति पर एक दूसरे को सम्बोधित करते हुए कहने लगे
एक-कहो भाई ! आज तक तुमने इस प्रकार का सरस और सारगर्भित व्याख्यान किसी और
साधु से भी सुना है ? दूसरा-नहीं भाई साहब ! हमारे जीवन में तो ऐसा उत्तम प्रवचन सुनने का यह पहला ही
अवसर है ! तीसरा-बीच में ही टोकता हुआ बोला-भाई साहब ! क्या पूछते हो व्याख्यान की, यह तो
अमृत की वर्षा थी ! ऐसे ज्ञानवान् महापुरुष के तो दर्शन ही बड़े भाग्य से
होते हैं। इस प्रकार महाराज श्री आत्मारामजी के प्रवचन और उनके व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हुए सब लोग अपने २ घरों में चले गये।
दूसरे दिन के व्याख्यान में जनता की संख्या पहले दिन से बहुत अधिक थी। पाट पर विराजते ही श्रोताओं ने बड़ी श्रद्धा से आपको वन्दन किया और व्याख्यान सुनने के लिये शान्तमन से यथा स्थान बैठ गये। आज की व्याख्यान सभा में जैनों के अतिरिक्त अन्य मतावलम्बियों की संख्या भी काफी थी।
अाज का व्याख्यान कल से भी अधिक आकर्षक सारग्राही और तलस्पर्शी था । श्रोतालोग मंत्रमुग्ध हुए बैठे सुन रहे थे ! व्याख्यान के अन्त में आपने फर्माया कि भाइयो ! संसार में रुलते हुए इस जीवात्मा को सद्गति में लेजाने वाला एक मात्र धर्म है, धर्म के अनुसरण करने से ही इस जीव का उद्धार हो सकता है, इसलिये धर्म का आचरण करना नितान्त आवश्यक है। आज के प्रवचन में मैंने सर्वज्ञ सर्वदर्शी वीतराग परमात्मा के बतलाये हुए धर्म का ही आपको स्वरूप बतलाया है, इस विषय में यदि किसी महानुभाव को किसी प्रकार की शंका हो तो वह अभी उसका निर्णय कर लेवे, और यदि किसी को विशेष जानने की जिज्ञासा हो तो वह स्थान पर-जहां कि मैं ठहरा हुआ हूँ-पाकर भी पूछ सकता है साधु का द्वार सबके लिये सदा खुला है ! किसी को किसी प्रकार का संकोच नही होना चाहिये ।
____ आपके इस कथन को सुनकर किसी में भी उठकर कुछ पूछने का साहस नहीं हुआ । जो लोग पूज्य अमरसिंहजी के पत्र से प्रभावित होकर आपसे चर्चा करने के मनसूबे बान्ध रहे थे वे भी एकदम ठंडे पड़गये । प्रत्युत उन में से कितने एक तो आपके पक्के श्रद्धालु बन गये। किसी कवि ने सत्य ही कहा है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org