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________________ युग निर्माता नगर तथा ग्राम में भिजवा दिये। जो लोग विचारशील थे और श्री आत्मारामजी की ज्ञानसम्पत्ति से परिचित थे एवं समझते थे कि वे जो कुछ कह रहे हैं वह सब शास्त्रसम्मत है वे तो इन पत्रों को देखकर पत्र भेजने और लाने वालों की हंसी उड़ाते थे और कहते थे श्री आत्मारामजी के सामने आने की तो किसी शक्ति नहीं केवल दूर से ही फांफां मार रहे हैं, यदि आत्मारामजी का कथन असत्य है तो क्यों नहीं उनको सभा में शास्त्रार्थ करने के लिये ललकारते, तथा सत्यासत्य का निर्णय करते ? वास्तव में बात तो यह है कि जिन बातों का श्री आत्मारामजी प्रचार करते हैं वे सत्य और शास्त्रीय हैं उनका विरोध सामने तो कर नहीं सकते किन्तु अबोध जनता को उनके विरुद्ध भड़काकर अपनी झूठी प्रतिष्ठा की रक्षा करनी चाहते हैं । और जो, बेसमझ लोग थे वे पत्र लाने वालों की हां में हां मिलाने को तैयार होगये । १३४ इधर पूज्य श्री अमरसिंहजी के भेजे हुए श्री जीवनमल और पन्नालाल आदि साधु लेख - (मेजरनामा) को लेकर श्री आत्मारामजी के पास कान्धला में पहुंचे। उस समय श्री आत्मारामजी बड़ौत से बिहार कर के "कान्धला " ग्राम में पधारे हुए थे । श्री जीवनमल तो चुप रहे और पन्नालाल ने वह लेखवाला पत्र श्री आत्मारामजी के पास जाकर उन्हें दे दिया और कहा कि इस लेखपत्र पर आप भी हस्ताक्षर कर देवें जैसे कि अन्य साधुओं ने किये हैं । यदि नहीं करोगे तो समुदाय से बाहर होना पड़ेगा ! ऐसा पूज्य जी साहब का फर्मान है । श्री आत्मारामजी - सहज उत्तेजना से मेरे गुरुजी तो मुझसे कुछ बोले नहीं तो फिर तू मुझसे हस्ताक्षर कराने और नहीं करने पर समुदाय से अलग होने की धमकी देने वाला कौन ? जाओ अपना काम करो ! तुमारे इस इठी दुराग्रही और शास्त्र - ज्ञानशून्य मूर्ख टोले में सत्य-गवेषक विचारशील व्यक्ि स्थान ही कहां है ? और वह रहकर करेगा भी क्या ? तुम लोगों ने मेरे लिये जो षड्यंत्र रचा है उससे मैं अपरिचित नहीं हूँ, मुझे आप लोगों की इन धमकियों की अणुमात्र भी पर्वाह नहीं । सत्य का पुजारी झूठी धमकियों से कभी भयभीत नहीं हो सकता ! मुझे शास्त्र सम्मत सच्ची बात कहने और आचरण करने में किसी का भी डर नहीं । डर उन लोगों को होगा जो भगवान् महावीर के नाम से झूठी दुकानदारी चला रहे हैं ! इसलिये जाओ अपने पूज्यजी साहब से कहदो कि मैं आपकी ऐसी झूठी धमकियों के सामने कभी झुकने को तैयार नहीं हूँ अगर सत्यासत्य का निर्णय करना है तो मैदान में आकर करो ! अन्यथा आपका यह मेजर नामा मेरी दृष्टि में रद्दी की टोकरी में फेंके जाने वाले कागज के पुर्जे से अधिक महत्व नहीं रखता । आपके कथन पर [ जो सरासर शास्त्र विरुद्ध है ] विश्वास करने वाले आपके अन्धविश्वासी भक्तजन या उनकी देखा देखी चलने वाले दूसरे अबोधजन यदि मुझे स्थान नहीं देंगे तो मेरे लिये और बहुत से स्थान हैं ! आहार पानी के लिये इनके घरों के सिवा बाकी सारे संसार के घर मौजूद हैं, आपकी शास्त्रविरुद्ध श्राज्ञा को शिरोधार्य करके यदि लोग मेरे पास नहीं आवेंगे, मुझे वन्दना नमस्कार नहीं करेंगे तो मेरा क्या बिगड़ेगा ? मेरी आत्मा पर तो इन बातों का अणुमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता। मैंने झूठी प्रतिष्ठा और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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