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अध्याय २०
विरोधि-दल का सामना
“पूज्य अमरसिंहजी का मेजरनामा"
इधर पंजाब में श्री आत्मारामजी के अनुयायियों की संख्या बढ़ती हुई देख पूज्य श्री अमरसिंहजी की चिन्ता बढ़ने लगी उन्होंने अपने पक्ष के कुछ साधुओं की सम्मति से एक लेख (मेजर नामा) तैयार कराया जिसका भावार्थ और शब्द रचना इस प्रकार की थी
"जो कोई साधु जिनप्रतिमा को मानने और पूजने का उपदेश दे, तथा सदोरक मुखवस्त्रिकाडोरे सहित मुख पर बन्धी हुई मुहपत्ती का विरोध करे या उसे शास्त्रविरुद्ध कहे एवं बावीस प्रकार के कहे जाने वाले अभक्ष्य ( नहीं खाने योग्य ) पदार्थों के नहीं खाने का नियम करावे उसको अपने समुदाय से बाहर कर देना चाहिये । इत्यादि ।।
इस लेख पर अपने पक्ष के साधुओं के हस्ताक्षर कराये और उनके अतिरिक्त श्री आत्मारामजी के गुरु श्री जीवनमल जी के हस्ताक्षर भी किसी प्रकार से-(छल रूपसे ) करा लिये गये तथा श्री जीवनमल और पन्नालाल आदि चार साधुओं को श्री आत्मारामजी के पास उक्त लेख पर उनके हस्ताक्षर कराने के लिये भेजा।
इसके अलावा दिल्ली आदि कई एक शहरों में पत्र भी लिखवाकर भेजे, उनमें लिखा था कि"आत्माराम की श्रद्धा बिगड़ गई है ! वे जिनप्रतिमा को वन्दना नमस्कार करने तथा पूजने का उपदेश देते हैं, डोरा सहित मुहपत्ती बान्धने का भी निषेध करते हैं, एवं बावीस अभक्ष्य पदार्थों के सेवन का निषेध भी करते हैं इसलिये हमने उनको संघबाहर करके पंजाब देश से निकाल दिया है । तुम लोगों ने उनको अपने यहां न तो स्थान देना और न उनकी संगत में आना । इसी आशय के अनेक पत्र पंजाब के हर एक
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